मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उठाए गए एहतियाती कदमों के बीच व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं. लेकिन धर्मस्थल अभी भी बंद हैं. अलबत्ता शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दे दी गई है. ऐसे में धर्मस्थलों को खोलने की मांग तेज हो गई है.
कोरोनावायरस के संक्रमण को लेकर देशव्यापी लॉकडाउन के चौथे चरण में धीरे-धीरे व्यावसायिक गतिविधियां जोर पकड़ने लगी हैं और बाजार भी खुलने लगे हैं. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जारी निर्देशों का पालन करते हुए जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिशें चल रही हैं.
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राज्य में अन्य व्यवसायिक गतिविधियों के साथ शराब की दुकानें भी खोलने की अनुमति दे दी गई है. यह बात अलग है कि शराब कारोबारियों और सरकार के बीच कई मामलों को लेकर तनातनी जारी है. शराब दुकानों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा गया है. इसी के मद्देनजर पुष्पराजगढ़ से कांग्रेस विधायक फुंदेलाल माकरे ने सवाल उठाया है कि जब सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं तो धर्मस्थलों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर उन्हें क्यों नहीं खोला जा सकता.
मार्को का कहना है कि "तमाम धर्मो के अनुयायियों को अपने आराध्य पर आस्था होती है. यही कारण है कि सुख-दुख के समय श्रद्घालु अपने आराध्य को याद करते हैं. कोरोना महामारी है और लोग दुखी व परेशान हैं. ऐसे में धार्मिक स्थलों का बंद रहना न्यायोचित नहीं है. जब सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति दी जा सकती है तो धार्मिक स्थलों को भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए."
भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के वरिष्ठ नेता और नागरिक आपूर्ति निगम के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हितेश वाजपेई का कहना है कि "धार्मिक स्थलों के संदर्भ में जल्द ही निर्णय लिया जाएगा. जहां तक शराब दुकानों की बात है तो यह व्यवसायिक गतिविधि है, इसका सीधा संबध अर्थव्यवस्था से है. जब अन्य व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं तो इन दुकानों को भी खोलने की अनुमति दी गई है. धार्मिक स्थल स्वायत्त इकाई हैं. यह सामाजिक, धार्मिक गतिविधि है और वहां सरकारी नियम नहीं चलते. वैसे अभी धार्मिक, राजनैतिक तथा अन्य सार्वजनिक आयोजनों पर पूरी तरह रोक है."
इससे पहले मठ-मंदिरों की समस्या को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा था और इससे जुड़े लोगों की समस्या से अवगत कराते हुए मंदिरों की पूजा के लिए पांच हजार रुपये और पुजारियों के लिए साढ़े सात हजार रुपये प्रति माह दिए जाने की मांग की थी. उसके बाद सरकार ने प्रदेश भर के पुजारियों के लिए आठ करोड़ रुपये की राशि जारी की थी, ताकि पुजारियों को आर्थिक दिक्कतों का सामना न करना पड़े.
मठ-मंदिरों से जुड़े लोगों का कहना है कि मंदिरों से सिर्फ पुजारियों का जीवन नहीं चलता, बल्कि प्रसाद, फूल-माला आदि सामग्री बेचने वाले हजारों परिवारों का भरण-पोषण भी मंदिरों के जरिए चलता है, लिहाजा सरकार को इन वगरें की समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए.
Source : News Nation Bureau