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आरटीआई के तहत 1 सवाल के आए 360 जवाब, सूचनाओं का आना अभी भी जारी

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत डाक विभाग से पूछा गया एक सवाल, जिसके 360 जवाब आए. यह बात आपको अचरज में डाल सकती है, मगर है सौ फीसदी सच.

Updated on: 12 Oct 2019, 01:28 PM

भोपाल:

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत डाक विभाग से पूछा गया एक सवाल, जिसके 360 जवाब आए. यह बात आपको अचरज में डाल सकती है, मगर है सौ फीसदी सच. इतना ही नहीं, जवाब आने का सिलसिला अब भी जारी है.

सरकारी मशीनरी के कामकाज में पारदर्शिता लाने के साथ आम आदमी को जानकारी मुहैया कराने के मकसद से 14 साल पहले वर्ष 2005 में देश में सूचना का अधिकार लागू किया गया था. मध्यप्रदेश के नीमच जिले के सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जिनेंद्र सुराना ने डाक विभाग के डाकघर, परिसर, कार्यालय और आवासीय परिसर की जानकारी मांगी.

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सुराना ने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन आवेदन भेजकर डाक विभाग की संपत्ति के बारे में जानकारी चाही थी. उन्होंने पूछा था कि विभाग की अचल संपत्तियों की बाजार कीमत और बुक वैल्यू कितनी है? इस सवाल का जवाब देने की जिम्मेदारी विभाग ने चीफ पोस्ट मास्टर और सभी पोस्ट मास्टर जनरलों को सौंप दी.

सुराना के मुताबिक, जानकारी भेजने की जिम्मेदारी विभाग के बड़े अधिकारियों से होते हुए सभी डाक अधीक्षकों पर आ गई. उन्हें निर्देश दिया गया कि वे अपने कार्यालय की जानकारी सीधे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराएं. उनकी ओर से जानकारी भेजने का सिलसिला शुरू हुआ तो इतने जवाब आए कि पूछने वाला परेशान हो गया.

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सुराना ने बताया कि उनके यहां कई दिनों से औसतन लगातार 10 से ज्यादा डाक आ रही हैं. उनकी ओर से ऑनलाइन आवेदन 7 अगस्त को किया गया था और डाक के जरिए जवाब आने का सिलसिला 13 अगस्त से शुरू हुआ. एक दिन में अधिकतम 22 और न्यूनतम पांच डाक आई है. इस तरह अब तक कुल 360 जवाबी डाक उनके पास आ चुकी है.

सूचना के अधिकार के तहत जवाब देने की प्रक्रिया पर सुराना ने सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि आवेदन ऑनलाइन किया गया था, मगर जवाब डाक के जरिए आ रहे है और जो जवाब आ रहे हैं, उनमें से अधिकांश संतोषजनक नहीं हैं. अब तक 25 से 30 जिलों व मंडल ने ही अपनी अचल संपत्ति की जानकारी दी है. दक्षिण के एक मंडल ने तो वर्ष 1870 की बुक वैल्यू की जानकारी उपलब्ध कराई है.

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सुराना का कहना है कि सूचना का अधिकार जिन उद्देश्यों को लेकर अमल में लाया गया, उसे अब तक कई विभाग समझ ही नहीं पाए हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है. इसका ताजा उदाहरण डाक विभाग है. डाक विभाग को आवेदन का जवाब ऑनलाइन देना चाहिए था, मगर वह डाक के जरिए भेजे जा रहे हैं. विभाग के मुखिया को अपने स्तर पर संयोजित करके ब्यौरा देना चाहिए था, मगर उन्होंने इस काम में डाक अधीक्षकों को उलझा दिया.