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स्मार्टसिटी जबलपुर की खुल रही है फाइल, विकास के नाम पर हुए खेल खुलेंगे?

आरोप लगाए गए कि नगर निगम, स्मार्ट सिटी के अफसर, जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से चिप लगाने वाली कंपनी ने घरों में कंप्यूटराइज चिप की जगह प्लास्टिक की पट्टियां ठोंक कर जनता के पैसों की बंदरबाट कर ली. साल 2017-18 चिप घोटाले की शिकायत शासन तक...

Updated on: 08 Sep 2022, 07:54 PM

highlights

  • जबलपुर स्मार्टसिटी प्रोजेक्ट की खुल रही है फाइल
  • घोटालों की खुल सकेगी परत? 
  • करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए गए

जबलपुर:

जबलपुर शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर किए गए कार्यों की अब समीक्षा की जा रही है. जबलपुर नगर निगम में सत्ता परिवर्तन के बाद अब स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्टों की फाइलों को दोबारा खोला जा रहा है. इसी कड़ी में बीजेपी की नगर सरकार में हुए आरएफआइडी यानि रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन चिप घोटाले का जिन्न बोतल से एक बार फिर बाहर आएगा. दरअसल, जबलपुर शहर को स्मार्ट बनाने के मकसद को लेकर स्वच्छता अभियान को डिजिटल बनाया गया. इसके तहत स्मार्ट सिटी ने साल 2016-17 में कचरे उठाने वाली गाड़ियों की निगरानी के लिए घरों घर आरएफआईडी चिप याने रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन चिप लगाने का ठेका एक प्राइवेट कंपनी को दिया था.

करोड़ों के ठेकों में खेल? 

शहर के करीब 2 लाख 26 हजार घरों में आरएफआइडी चिप लगवाई गई थीं. स्मार्ट सिटी ने दिल्ली की टेक महेन्द्रा कंपनी को 6 करोड़ 80 लाख का ठेका दिया था. कंपनी ने घरों की दीवारों में ड्रिल करके चिप लगाने की बजाय कीलों से चिप ठोंक दी गई. आरोप लगाए गए कि नगर निगम, स्मार्ट सिटी के अफसर, जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से चिप लगाने वाली कंपनी ने घरों में कंप्यूटराइज चिप की जगह प्लास्टिक की पट्टियां ठोंक कर जनता के पैसों की बंदरबाट कर ली. साल 2017-18 चिप घोटाले की शिकायत शासन तक पहुंच चुकी थी. तत्कालीन प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन संजय दुबे ने जांच के आदेश भी दिए लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. अब जबलपुर के महापौर जगत बहादुर अनु ने इस मामले को एक बार फिर उठाया है और पूरे घोटाले की जांच की बात कही है.

बदले की भावना से नहीं हो रही जांच

इधर इस मामले पर पूर्व महापौर स्वाति गोडबोले का कहना है की नगर सरकार बदले की भावना से नहीं बल्कि समर्पण की भावना से काम करें. आरएफआईडी चिप मामला नगर निगम का नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट था लिहाजा इस मामले पर नगर निगम कुछ भी नहीं कर सकता था.

 

आरएफआईडी चिप प्रोजेक्ट में घोटाला तो हुआ था इसमें कोई दो राय नहीं है. बहरहाल अब यह जांच कितनी दूर तलक जाएगी और इसमें कौन-कौन अधिकारी और जनप्रतिनिधि दायरे में आते हैं या आने वाला समय बताएगा. लेकिन इतना जरूर है कि जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए पानी में बह चुके हैं. जिसका फिलहाल तो कोई हिसाब नहीं है.