दमोह जिला अस्पताल में मरीजों का हाल बेहाल है. कायाकल्प अभियान के अंतर्गत दमोह जिला अस्पताल पांचवें पायदान पर है, लेकिन जमीनी हकीकत में यह अस्पताल आज भी अपने दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है. यहां पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन नतीजे सिर्फ रहे. बीती रात मध्य प्रदेश विद्युत मंडल की लापरवाही के चलते अस्पताल की बिजली आपूर्ति ठप हो गई है. आईसीयू वार्ड में मरीज मोमबत्ती के सहारे देखे गए.
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जब मरीजों से पूछा तो उनका कहना था कि लाइट की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे काफी परेशानी हो रही है. अस्पताल में ऐसा अंधेरा है कि एक हाथ दूसरे हाथ को नजर नहीं आता तो भला मरीजों को आईसीयू वार्ड में क्या नजर आएगा. जब इस बड़ी लापरवाही के संबंध में दमोह जिला अस्पताल के सिविल सर्जन ममता तिमोरी से हमने चर्चा की तो उन्होंने कहा कि लाइट गोल हुई थी, जनरेटर चालू नहीं हो पाए. जनेटर तो ठीक हैं, लेकिन चालू करने वाले की बड़ी लापरवाही है.
ऐसे में सवाल ये उठता है इस लापरवाही के बाद अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों को मोमबत्ती के सहारे कैसे छोड़ दिया. भला अस्पताल प्रबंधन इतना लापरवाह कैसे हो सकता है कि मरीजों की जान से ही खिलवाड़ किया जाने लगे और उसे छोटी सी गलती समझा जाए.
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प्रदेश के अन्य जिलों के साथ दमोह में भी बिजली आपूर्ति की स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन अस्पताल जहां जनरेटर लगाए गए हैं. करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं. बावजूद इसके बिजली आपूर्ति बंद होने पर जनरेटर चालू ना होना यह बताता है की कायाकल्प में भले ही जिला अस्पताल पांचवें पायदान पर हो, लेकिन इसकी व्यवस्था आज भी पुराने ढर्रे पर है. जहां मरीजों की जिंदगी से खेला जा रहा है.
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