बेटे की अस्थियां लेकर 11 साल से भटक रही यह बुजुर्ग महिला, अब तक नहीं मिला न्याय

बुजुर्ग महिला पिछले एक दशक से ज्यादा समय से न्याय के लिए दर-दर भटक रही है. यह मामला मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का है.

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Dalchand Kumar
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बेटे की अस्थियां लेकर 11 साल से भटक रही यह बुजुर्ग महिला, अब तक नहीं मिला न्याय

हाथ में जवान बेटे की अस्थियों से भरा कलश, लडखड़ाती जुबान और आंखों से बहती आंसुओं की धार वृद्ध मां के दर्द को बयां कर रही थी. न्याय की आस में पिछले 11 साल से वह अफसर और जनप्रतिनिधियों के दफ्तरों के चक्कर काट रही है. हर बार अफसर और जनप्रतिनिधि जांच की बात कहकर आश्वासन दे देते हैं, लेकिन वृद्ध मां को 11 साल बीतने के बाद भी जवान बेटे की मौत में न्याय नहीं मिल सका. यह मामला मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का है.

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एक दशक से ज्यादा समय से न्याय के लिए दर-दर भटक रही है

बुजुर्ग महिला पिछले एक दशक से ज्यादा समय से न्याय के लिए दर-दर भटक रही है. न्याय की उम्मीद लेकर बुजुर्ग रतमी बैगा बुधवार को फिर अफसरों के दफ्तर पहुंची. यहां पर अधिकारियों से शिकायत करते हुए व्यथा सुनाई. बहते आंसू और लडखड़ाती जुबान से वृद्धा ने जवान बेटे की हत्या का आरोप लगाया. उसका कहना था कि अभी भी अगर न्याय नहीं मिला तो उसी गड्ढे में कूदकर अस्थि कलश के साथ खुद भी जान दे दूंगी. वृद्धा पिछले 11 साल से अपने साथ जवान बेटे की अस्थियों का कलश रखी है. उसका कहना था कि जब तक बेटे की मौत का न्याय नहीं मिलेगा, तब तक अस्थियों को प्रवाहित नहीं करूंगी.

आंदोलन के वक्त 11 साल पहले गड्ढे में संदिग्ध मिली थी लाश

वृद्ध मां रतमी बैगा ने बताया कि 2008 में पानी को लेकर आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन में बेटा मोहन भी शामिल था. बाद में 20 मार्च 2008 को स्थानीय फैक्ट्री द्वारा कराए गए गड्ढे में मोहन की लाश मिली थी. पीड़िता ने बताया कि सोडा फैक्ट्री और पेपर मिल के कर्मचारियों ने पूरे एक दिन लाश नहीं निकाली थी. लाश पानी के भीतर ही पड़ी रही. पीड़िता के साथ पहुंचे लोगों ने बताया कि हत्या को डूबने से मौत का रूप देने के लिए लाश तुरंत नहीं निकाली गई थी. कर्मचारियों ने ही अंतिम संस्कार कर दिया था. शव न तो घर तक पहुंचाया गया था और न ही परिजनों के सुपुर्द किया गया था.

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थक गई हूं साहब, कितना बोलू, मैं खुद ही मर जाऊंगी

न्यूज़ स्टेट से बातचीत करते हुए वृद्ध मां रतमी बाई के आंसू छलक गए. कहने लगी कहते कहते थक गई हूं साहब, न अफसर सुनते हैं और न ही नेता कोई आगे आता है, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी हूं. पीड़िता का कहना है कि वो लोग बड़े हैं न, इसलिए कोई कुछ नहीं करता उनका, लेकिन मैं भी अडिग हूं. जब तक न्याय नहीं मिलेगा, बेटे की अस्थियों का कलश साथ रहेगा और बाद में मैं खुद ही उसी गड्ढे में कूदकर जान दे दूंगी.

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