दमोह उपचुनाव: दलबदलू उम्मीदवार के खिलाफ नाराजगी बनी भाजपा का सिरदर्द
भाजपा ने दमोह उपचुनाव को गंभीरता से लिया है. यही कारण है कि उसने सरकार के एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों को प्रचार की कमान सौंप दी है और आलम यह है कि मंत्री घर-घर दस्तक दे रहे हैं.
highlights
- दमोह में हो रहा विधानसभा का उपचुनाव
- राहुल लोधी को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है
- राहुल लोधी के खिलाफ लोगों में नाराजगी है
दमोह:
मध्य प्रदेश के दमोह में हो रहा विधानसभा का उपचुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच गया है. यहां न तो कोई मुद्दा और न ही कोई लहर देखी जा रही है. हालांकि दल-बदल कर भाजपा के उम्मीदवार बनने वाले राहुल लोधी के खिलाफ लोगों में नाराजगी जरूर है. भाजपा के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. भाजपा इस मशक्कत में जुटी है कि आखिर राहुल के खिलाफ पनपी नाराजगी को कैसे दूर किया जाए. राज्य में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में दमोह क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर राहुल लोधी ने जीत दर्ज की थी और कांग्रेस सत्ता में आई थी. लगभग 15 माह बाद 28 विधायकों के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी. उप चुनाव हुए और 28 में से 19 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की इसके बाद राहुल लोधी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया. यही कारण है कि दमोह में उपचुनाव हो रहा है.
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राहुल लोधी को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है, लेकिन राहुल लोधी के खिलाफ लोगों में नाराजगी है. लोधी के दल-बदल को लेकर लोग सवाल कर रहे हैं और भाजपा भी यह जान रही है कि यह सवाल उसके लिए बड़ा सिरदर्द बना है.
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भाजपा ने दमोह उपचुनाव को गंभीरता से लिया है. यही कारण है कि उसने सरकार के एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों को प्रचार की कमान सौंप दी है और आलम यह है कि मंत्री घर-घर दस्तक दे रहे हैं. इतना ही नहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी दमोह में कैंप डाल रखा है.
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आम तौर पर उपचुनाव तो सत्ता पक्ष जीता है मगर दमोह में उपचुनाव एकतरफा नहीं है. इसका बड़ा कारण उम्मीदवार है. लोगों में भाजपा को लेकर किसी तरह की नाराजगी नहीं है मगर राहुल लोधी से नाराज हैं. भाजपा के लिए यह चुनौती है कि वह कैसे लोगों को यह समझाए कि वे राहुल के पक्ष में मतदान करें.
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर देष के अनेक हिस्सों में आंदोलन चल रहा है, कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कृषि कानून मुददा बना हुआ है, मगर दमोह में इसकी चर्चा ही नहीं है. ग्रामीण इलाकों के मतदाता जो कृषि कार्य से जुड़े हुए है, वे भी इन कानूनों से बेखबर है. कुल मिलाकर यहां कृषि कानून भी मुददा नहीं बन पाया है.
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