अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया करते हैं कांग्रेस से बगावत तो क्या करेगी बीजेपी, जानिए पूरा प्लान
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी के रवैए से नाराज चलने की खबरों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उत्साहित हैं.
भोपाल:
मध्य प्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी के रवैए से नाराज चलने की खबरों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उत्साहित हैं. बीजेपी और संघ ने इस दिशा में होमवर्क तेज कर दिया है कि अगर सिंधिया बगावत करते हैं तो उन्हें बीजेपी में शामिल कैसे किया जाए. बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद कांग्रेस की लाइन से हटकर सिंधिया ने फैसले को सही ठहराया था. इस बयान को सिंधिया की पार्टी से चल रही नाराजगी को जोड़कर देखा गया. इसके बाद लगातार यह बात सामने आती रही कि सिंधिया राज्य इकाई का अध्यक्ष जल्दी घोषित न किए जाने से नाराज हैं.
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इसी बीच सागर में एक संत के सानिध्य में पिछले दिनों हुई विधायकों की बैठक भी चर्चा में है. सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में सिंधिया के समर्थक माने जाने वाले कई विधायक शामिल हुए थे. बैठक में बीजेपी के भी कुछ विधायक थे. इस बैठक में उन संभावनाओं पर भी चर्चा हुई थी कि अगर सिंधिया बीजेपी की ओर हाथ बढ़ाते हैं तो क्या किया जाना चाहिए. सिंधिया और उनके समर्थकों के बीजेपी से संपर्क की चर्चा को कोई भी नेता स्वीकारने तैयार नहीं है.
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने सिंधिया का नाम लिए बगैर कहा, 'कुछ लोग दवाब की राजनीति करते हैं. वे कह रहे हैं कि या तो मुझे मुख्यमंत्री बनाओ या अध्यक्ष. यही कांग्रेस में हो रहा है. एक नेता ने अपने को बीजेपी में जाने की बात प्रचारित कर 20-25 अफसरों के तबादले करा लिए. गुना-शिवपुरी में उनकी शक्ति चली गई और बात हो रही है शक्ति प्रदर्शन की.'
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वहीं सिंधिया के करीबियों का कहना है कि राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद मुख्यमंत्री को लेकर काफी खींचतान चली थी. तब बीजेपी की ओर से सिंधिया की दोनों बुआ वसुंधराराजे सिंधिया और यशोधराराजे सिंधिया को ज्योतिरादित्य को बगावत के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. मगर तब ज्योतिरादित्य ने इस तरह का कोई कदम उठाने से साफ इनकार कर दिया था, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी मिलने का भरोसा दिलाया गया था. लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ही सिंधिया भी चुनाव हार गए.
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी और संघ दोनों ही मध्य प्रदेश की परंपरागत पीढ़ी को कांग्रेस से दूर करना चाहते हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण सिंधिया हैं. इसके लिए एक रणनीति पर दोनों ही काम कर रहे हैं. संगठन ने जहां यशोधराराजे सिंधिया को सक्रिय रहने को बोला है, वहीं संघ से जुड़े कुछ लोग भी सिंधिया से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं. ज्योतिरादित्य के बीजेपी के कुछ नेताओं से मेल-मुलाकात की चर्चाएं भी हैं. यह भी हकीकत है कि सिंधिया राजघराने की बीजेपी से करीबी है. ज्योतिरादित्य के कई बीजेपी नेताओं से संबंध हैं.
संघ के एक करीबी का कहना है, 'यह कोशिश हो रही है कि ज्योतिरादित्य बीजेपी से जुड़ जाएं. इसका कारण यह है कि ज्योतिरादित्य के आने से कांग्रेस के पास युवा आईकॉन नहीं बचेगा. दूसरा उन पर किसी तरह का भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. वह ऊर्जावान हैं, उनके चाहने वाले हैं. सिंधिया बीजेपी के लिए अस्वीकार्य भी नहीं हैं. इसलिए अगर यह कोशिश सफल हो जाती है तो राज्य से कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.'
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सूत्रों का कहना है कि संघ और ज्योतिरादित्य के बीच उमा भारती को कड़ी की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई है. उमा भारती किसी दौर में ज्योतिरादित्य की दादी विजयाराजे सिंधिया की नजदीकी हुआ करती थीं. पिछले दिनों उमा भारती का भोपाल दौरा हुआ तो उन्होंने सिंधिया समर्थकों से मुलाकात भी की थी. राजनीति के जानकार कहते हैं कि इन दिनों बीजेपी भी सिंधिया पर सीधे तौर पर हमला करने से बच रही है. इसका कारण यही है कि बीजेपी उनसे नजदीकी बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है. वहीं कांग्रेस के कुछ नेता उनके खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं. यह स्थिति बीजेपी को अपने अनुकूल लग रही है.
गौरतलब है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बाहरी समर्थन से चल रही है. राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर कांग्रेस और 108 पर बीजेपी का कब्जा है. कमलनाथ सरकार को सपा के एक, बसपा के दो और निर्दलीय चार विधायकों का समर्थन हासिल है. इस स्थिति में बीजेपी कांग्रेस के 30 विधायकों पर नजर लगाए हुए है. सूत्रों के अनुसार, बीजेपी की सिंधिया समर्थक 20 से 25 विधायकों और उसके अलावा 10 विधायकों का एक धड़ा बनाकर उसे कांग्रेस से अलग करने की तैयारी जोरों पर है. अगर 35 विधायक पार्टी से अलग होते हैं तो उन पर दलबदल का कानून भी लागू नहीं होगा.
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