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अपनों का धोखा: वृद्धाश्रम में बुजुर्ग खुद का ही कर रहे हैं श्राद्ध

जब अपनों का अपनों पर ही भरोसा न रहे तो ख़ुद पर भरोसा काम आता है. कुछ ऐसा दिखा भोपाल के 'अपना घर वृद्ध आश्रम' में. जहां घर वालों के बेरुखे व्यवहार ने इन वृद्धों को संन्यासी की  तरह बना दिया है. दरअसल भारतीय संस्कृति  में संन्यासी बनने...

Updated on: 18 Sep 2022, 01:49 PM

highlights

  • अपना ही पिंड दान करने को मजबूर बुजुर्ग
  • बच्चों की बेरुखी से टूट चुका है दिल
  • कई बार मौत के बाद भी नहीं पहुंचते बच्चे

भोपाल:

जब अपनों का अपनों पर ही भरोसा न रहे तो ख़ुद पर भरोसा काम आता है. कुछ ऐसा दिखा भोपाल के 'अपना घर वृद्ध आश्रम' में. जहां घर वालों के बेरुखे व्यवहार ने इन वृद्धों को संन्यासी की  तरह बना दिया है. दरअसल भारतीय संस्कृति  में संन्यासी बनने से पहले ख़ुद का श्राद्ध, तर्पण, पिंड दान करना पड़ता है. लेकिन वहां वो परम्परा है और यहां मजबूरी. अपना ही श्राद्ध, तर्पण करते वक़्त इनके मन में क्या चल रहा है. कोई मजबूरी, कोई दुख, कोई भाव या भाव का अभाव सिर्फ उन्हें ही पता होता है.

खुद ही अपना पिंडदान और तर्पण कर रहे बुजुर्ग

इस वृद्धाश्रम में रह रहे सभी बुजुर्गों की उम्र 70 वर्ष से ज़्यादा है. हर किसी के बच्चों ने इन्हें छोड़ दिया है. इनका कहना है कि जीते जी जब उन्हें उनके पुत्रों ने छोड़ दिया, तो मरने के बाद वो हमें देखने भी आएंगे, इसका कैसे पता. इसीलिए ख़ुद ही पिंडदान, तर्पण कर रहे हैं. आज का दौर सोशल मीडिया का है. फादर डे से लेकर मदर्स तक खूब मनाया जाता है. मगर दूसरी तरफ़ एक दर्दनाक और शर्मनाक तस्वीर ये भी है कि इस आधुनिक युग में माता-पिता इस तरह से वृद्ध आश्रम में रहने को मजबूर हैं. 

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कई बार मौत के बाद भी नहीं आते बच्चे

माधुरी मिश्रा दो दशकों से अपना घर वृद्धा आश्रम चला रही है. उनका कहना है कि आज के दौर में बच्चों ने माता-पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया है. कोई मिलने नहीं आता. कई बार किसी की यहां मौत हुई तो दो दिन तक बॉडी को उनके इंतज़ार में रखा, मगर कोई नहीं आया. आख़िरकार मेरी बेटी ने ही अंतिम संस्कार किया. उनकी अस्थियों का विसर्जन भी हम ही करते हैं. (रिपोर्ट-शुभम)