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आदिवासी लड़कियों की ट्रैफिकिंग का बड़ा मामला, कहानी सुन पसीज जाएगा दिल

झारखंड के गरीब और भोली-भाली आदिवासी युवतियों की ट्रैफिकिंग कर महानगरों में बेचे जाने, प्रताड़ित करने और फिर रेसक्यू कर मुक्त कराने की खबर तो आपने कई दफे सुनी और देखी होंगी.

Updated on: 16 Oct 2022, 02:34 PM

Deoghar:

झारखंड के गरीब और भोली-भाली आदिवासी युवतियों की ट्रैफिकिंग कर महानगरों में बेचे जाने, प्रताड़ित करने और फिर रेसक्यू कर मुक्त कराने की खबर तो आपने कई दफे सुनी और देखी होंगी. आज हम आपको ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार हुई एक युवती की कहानी बताने जा रहे हैं, उसे देख और सुनकर यकीनन आपका दिल भी पसीज जायेगा. जुबां से एक ही अल्फाज निकलेंगे, उफ्फ. यह कैसा दंश है, अपने घर के आंगन में अपनों के बीच लुखुमनी चहक रही है. ठीक वैसे ही, जैसे पिंजरे में कैद किसी परिंदे को खुला आसमान मील गया हो, लेकिन खुद पर बीती ज़्यादती को याद कर लुखुमनी आज भी सिहर जाती है. घर के आंगन में सुकून से बैठकर अपने  गांव से दिल्ली पहुंचने और वहां दी गई यातनाओं की दर्दभरी दास्तां सुना रही है. लुखुमनी की आंखों में वह भयानक तस्वीर आज भी ज़िंदा है.

यह कहानी है ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार बनी देवघर जिले के मार्गोमुण्डा तहसील अंतर्गत बरमसिया गांव की रहने वाली तीस साल की लुखुमनी की, जिसे काम दिलाने के बहाने संजय नाम के एक शख्श दिल्ली में एक रईस के हाथों 50 हजार रुपये के लिए बेच दिया था. इससे पहले कि हम आपको लुखुमनी पर बीते ज़ुल्म कि इंतेहा बयां करें. आपके लिए गांव से दिल्ली और दिल्ली से गांव वापस तक की क्रॉनोलोजी भी जान लेना बेहद जरूरी है.

11 महीने पहले लुखुमनी को दिल्ली में ₹50 हजार में बेचा गया
दलाल ने लुखुमनी को दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित एक कोठी में पहुंचाया
लुखुमुनी के पिता जीहुलाल मुर्मू ने मारगोमुण्डा थाना में लिखित शिकायत दी थी 
11 महीने बाद स्थानीय संस्था द्वारा संचालित श्रमिक केन्द्र को इसकी जनकारी मिली
संस्था द्वारा झारखण्ड रेस्क्यु टीम दिल्ली को सूचना दी गयी 
झारखण्ड रेस्क्यू टीम द्वारा दिल्ली में लुखुमुनी की तस्वीर चिपकाई गई 

लुखुमनी बताती है कि दिल्ली में उसे बंधक बनाकर रखा गया था, भूखा रखा जाता था. विरोध करने पर मारपीट की जाती थी, परिजनों से सम्पर्क पर सख्त पाबंदी थी. घर के उपर छत पर छिपाकर रखा जाता था और  शारीरीक- मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था. बहरहाल, लुखुमनी अब अपनों के बीच है और दुनिया की तमाम रंजो-गम से दूर है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कबतक संताल इलाके की आदिवासी युवतियां लुखुमनी की ही तरह ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार होती रहेंगी.