बोकारो में सालों से जर्जर पुल पार कर रहे ग्रामीण, हो सकता है बड़ा हादसा
एक तरफ झारखंड सरकार ग्रामीण इलाकों के विकास की बात करती है और दूसरी ओर इन इलाकों में मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों को जद्दोजहद करना पड़ता है.
highlights
- पुल क्षतिग्रस्त... ग्रामीण त्रस्त
- सालों से जर्जर पुल पार कर रहे ग्रामीण
- ग्रामीणों को सता रहा हादसे का डर
- अधिकारी लापरवाह, जनप्रतिनिधि भूले रास्ता?
- सालों पहले क्षतिग्रस्त हुआ था पुल
Bokaro:
एक तरफ झारखंड सरकार ग्रामीण इलाकों के विकास की बात करती है और दूसरी ओर इन इलाकों में मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों को जद्दोजहद करना पड़ता है. ताजा मामला बोकारो का है, जहां लोग जान को हथेली में रखकर जर्जर पुल को पार करने को मजबूर है. सालों से क्षतिग्रस्त इस पुल की मरम्मत तो दूर अधिकारियों ने कभी यहां के ग्रामीणों की सुध भी नहीं ली है. क्षतिग्रस्त हुए इस पुल को देख कहना मुश्किल नहीं है कि यहां से गुजरना किसी बड़े हादसे को दावत देना है. ये बात यहां के ग्रामीण भी जानते हैं, लेकिन क्या करें.. पुल पार नहीं करेंगे तो ना ही बाजार तक पहुंच पाएंगे और ना ही दूसरे गांवों से संपर्क हो पाएगा. लिहाजा मजबूर ग्रामीण हर दिन इस जर्जर हो चुके पुल से गुजरने को मजबूर है.
बोकारो के बडकी चिदरी पंचायत और चूट्टे पंचायत के दर्जनों गांवों को आपस में जोड़ने वाला नवडडा नदी पर बना ये पुल सालों पहले क्षतिग्रस्त हो गया था. प्रशासन की लापरवाही ऐसी कि कई गांवों को जोड़ने वाले इस पुल की मरम्मत तो दूर अधिकारियों ने कभी इसका जायजा लेना भी मुनासिब नहीं समझा. ये पुल कर्मा टाड़, बनचत्रा, घोरा टाड़, बंनडीहा, कुरकुटिया नव डंडा, खरना, नवडडा, चिलगो, चतरो चट्टी, तिसकोपी, जारकुंडा, बडकी सिधावरा, हुरलुंग और चिपरी जैसे गांवों को आपस में जोड़ता है. जनप्रतिनिधियों को भी यहां के ग्रामीणों की याद तभी आती है जब वोट मांगना हो. चुनाव खत्म होने के बाद नेता यहां का रास्ता भूल जाते हैं और जनप्रतिनिधि-अधिकारियों की लापरवाही का दंश ग्रामीणों को झेलना पड़ता है.
बताया जा रहा है कि सालों पहले ये पुल पानी के तेज बहाव में बह गया था. तब से पुल की हालत जस के तस है. ग्रामीण जैसे तैसे जान को जोखिम में डालकर नदी पार करते है... दो पहिया और चार पहिया गाड़ियों का गुजरना बेहद मुश्किल होता है. इतना ही नहीं दिव्यांग और बीमार मरीज भी पानी में उतरकर नदी पार करने को मजबूर होते हैं.
हैरत की बात है कि एक तरफ सरकार ग्रामीण इलाकों के विकास की बात करती है और दूसरी ओर इन इलाकों में मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों को जद्दोजहद करना पड़ता है. बड़ा सवाल उन तमाम अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर भी उठता है जिनके ऊपर सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का जिम्मा होता है.
रिपोर्ट : संजीव कुमार
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