वीर तेलंगा खड़िया: कभी अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी थी जंग, आज गुमनामी में जीने को मजबूर है परिवार

वीर तेलंगा खड़िया की अगुवाई में अपनी माटी की रक्षा के लिए खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ था और इसी साल खत्म भी हो गया.

वीर तेलंगा खड़िया की अगुवाई में अपनी माटी की रक्षा के लिए खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ था और इसी साल खत्म भी हो गया.

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Shailendra Shukla
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वीर तेलंगा खड़िया( Photo Credit : सोशल मीडिया)

देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजार कराने के लिए हर वर्ग के लोगों ने अपना योगदान दिया. झारखंड के गुमला जिले के स्वतंत्रता सेनानी तेलंगा खड़िया ने भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ी थी. वीर तेलंगा खड़िया ने अंग्रेजों को मालगुजारी देने से साफ मना कर दिया था और आदिवासियों को एकत्रित कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. वीर तेलंगा खड़िया ने कहा था कि उनकी मेहनत, उनकी फसल, उनकी जमीन तो अंग्रेस उनसे लगान व मालगुजारी वसूलने वाले कौन हैं? वीर तेलंगा खड़िया का आह्वावान पर आदिवासी एकत्रित हुए और आलम ये हो गया कि अंग्रेजों की आंकों में वो चुभने लगे. मौका पाकर अंग्रेजों द्वारा उनकी हत्या कर दी जाती है. 

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1880 में किया था विद्रोह

वीर तेलंगा खड़िया की अगुवाई में अपनी माटी की रक्षा के लिए खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ था और इसी साल खत्म भी हो गया. दरअसल, 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों के दलाल बोधन सिंह ने वीर तेलंगा खड़िया की गोली मारकर हत्या कर दी थी। वीर तेलंगा खड़िया का जन्म 9 फरवरी 1806 को गुमला के सिसई प्रखंड के मुरगू गांव में हुआ था. 

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गुमनामी में जी रहा वीर तेलंगा खड़िया का परिवार

आजाद भारत के बाद व अविभाजित बिहार का हिस्सा रहने व बाद में झारखंड का हिस्सा बन जाने के बाद भी वीर तेलंगा खड़िया का परिवार गुमनामी में जीने को मजबूर है. जिले के घाघरा गांव में हर साल 9 फरवरी के अवसर पर तेलंगा खड़िया की जयंती पर मेला लगता है. आजतक इस मेले के लिए सरकार द्वारा कभी भी आर्थिक मदद नहीं की गई. मेले में आने वाले सभी खर्च का वहन वीर तेलंगा खड़िया के बंसज ही करते हैं.

परिवार की सुधि नहीं ले रही सरकार

वीर तेलंगा खड़िया के पोते चंद्रपाल खड़िया के मुताबिक, उन्हें व उनके परिवार को किसी भी प्रकार की कोई भी सरकार की तरफ से मदद नहीं मिल रही है. वो बताते हैं कि उन्होंने सीआरपीएफ में शामिल होने के लिए सारी परीक्षाएं पास कर ली थी लेकिन सिर्फ एक घाव निकल जाने के कारण उन्हें सीआरपीएफ में नहीं लिया गया. वीर तेलंगा खड़िया की हत्या के बाद उनके परिजनों को जमींदारों ने मुरगू गांव से भगा दिया था. उसके बाद परिजन सिसई प्रखंड के घाघरा गांव में रहने लगे. इस समय इस गांव में 15 परिवार निवास करते हैं.

मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है वीर तेलंगा खड़िया का परिवार

बसघाघरा गांव में तेलंगा खड़िया के वंशजों के 15 परिवार रहते हैं लेकिन इस गांव में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं है. कुएं का गंदा पानी पीने के लिए लोग मजबूर हैं और नहाने धोने के लिए भी गंदा पानी ही इस्तेमाल करने के लिए मजबूर है. गांव में सड़क और रास्ते भी नहीं हैं. 4-4 माह बिजली गायब रहती है. आज वीर तेलंगा खड़िया के वशंज गुमनामी की जिन्दगी जी रहे हैं. हालांकि, सरकार की तरफ से इन्हें सिर्फ शहीद आवास व पीएम आवास मिला है. जो इनके पास जमीन थी उसपर सभी 15 परिवार आपस में बांटकर खेती करते हैं. दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए वीर तेलंगा खड़िया के वंसज पलायन करने को मजबूर हैं.

Source : Shailendra Kumar Shukla

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