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सरायकेला में रोजगार का सहारा बनी दो हथिनी, लोग लेने आते हैं इनके साथ सेल्फी

सरायकेला के दलमा गज परियोजना में रंजनी और चंपा नाम की हथिनी रोजगार का जरिया बनी हुई हैं. दोनों हथिनी को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक दलमा गज परियोजना आ रहे हैं.

Updated on: 14 Dec 2022, 01:15 PM

highlights

  • रोजगार का सहारा बनी दो हथिनी
  • दलमा गज परियोजना में रंजनी और चंपा
  • रंजनी और चंपा के साथ लोग लेते हैं सेल्फी
  • दोनों हथिनियों को देखने के लिए आते हैं पर्यटक 

Saraikela:

सरायकेला के दलमा गज परियोजना में रंजनी और चंपा नाम की हथिनी रोजगार का जरिया बनी हुई हैं. दोनों हथिनी को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक दलमा गज परियोजना आ रहे हैं. अठखेलियां करती दोनों हथिनी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. खबर सरायकेला के दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी की हैं, जो मकुलाकोचा में स्थित है. इसमें चंपा नाम की हथिनी बुजुर्ग हो चुकी है. उसकी उम्र 65 साल है. जबकि रंजनी अभी युवा है. उसकी उम्र महज 14 साल है. दूर-दराज से आए पर्यटक जब भी दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी में आते हैं तो इन दोनों हथिनियों से मिले बिना नहीं जाते. सबसे खास बात ये है कि पर्यटक बेखौफ होकर इनको करीब से जाकर टच करते हैं और छूने के बाद जैसे लगता है कि उन्हें सारे जहान की खुशियां मिल गई. इन दोनों हथिनी की देखभाल के लिए महावत रखे गए हैं.

वहीं, दलमा सेंचुरी की तराई में बसी आदिवासी बाहुल ग्रामीणों की महिलाओं को माइक्रो प्लान के माध्यम से पर्यटन का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. इस प्रशिक्षण के बाद वे आने वाले टूरिस्टों को गाइड के रूप में लोकेशन की जानकारी उपलब्ध कराएंगी. जिसके एवज में उन्हें राशि दी जाएगी जो उन्हें रोजगार से भी जोड़ेगा.

दलमा सेंचुरी के तराई में बसे मकुलाकोचा गांव के रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि रंजनी और चंपा हथिनी की वजह से यहां पर्यटक घूमने के लिए आते हैं और उनके साथ सेल्फी का आनंद लेते हैं. इन दोनों हथिनी की वजह से यहां के लोगों का रोजगार भी फल-फूल रहा है. जिसको ध्यान में रखते हुए ग्रामीण रोजाना इनको खाने में कंदमूल देते हैं और दोनों ही हथिनी को प्रणाम करते हैं. करें भी क्यों न इन्हीं हथिनियों से उनके रोजगार का तार जो जु़ड़ा है.

मकुलाकोचा के चेकनाका पर सेविनोर शॉप एक महीने पहले खुला है. जिसमें स्थानीय लोगों के हस्तशिल्प से बनाई गई सामग्री पर्यटकों को खूब लुभाती है. यहां के ग्रामीण रंजनी और चंपा हथिनी को अपने जीवन का साधन मानते हैं. माने भी क्यों न इन्हीं दोनों हथिनियों से इनके परिवार की रोजी-रोटी जो चलती है.

रिपोर्ट : वीरेंद्र मंडल 

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