फुटबाल के कारण झारखंड में बच्चियों का बाल विवाह, तस्करी रुकी
इसी ने उन्हें अपनी उम्मीदों, सपनों के लिए लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया. अंशू जैसी कई और लड़कियों को खेल के माध्यम से दूसरों को प्रेरित कर रही हैं.
New Delhi:
अशिक्षित आदिवासी महिला 51 साल की तेत्री ने अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष किया है, लेकिन अपनी सबसे छोटी बेटी अंशू कच्चाप को फुटबाल के खेल में प्रतिदिन आगे बढ़ते देखना और इंटर स्कूल फुटबाल टूर्नामेंट के लिए ब्रिटेन जाते हुए देखना उनके लिए सपने के सच होने जैसा है. इसी ने उन्हें अपनी उम्मीदों, सपनों के लिए लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया. अंशू जैसी कई और लड़कियों को खेल के माध्यम से दूसरों को प्रेरित कर रही हैं.
तेत्री ने बताया कि जब उनकी बेटी ने फुटबाल खेलना शुरू किया तो कई लोगों ने इसका यह कहते हुए विरोध किया है कि वो लड़की है. तेत्री के मुताबिक, "लड़की का निक्कर पहन कर खेलना और फुटबाल के मैदान पर समय बिताना अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता और इसका काफी विरोध हुआ. मुझे याद है कि गांव वालों ने मुझे रोका और मेरा मेरी लड़की को फुटबाल खेलने की इजाजत देने पर चिंता जताई और साथ ही कहा कि मैं एक बुरी मां हूं."
यह भी पढ़ें- झारखंड : महागठबंधन के सीट बंटवारे में महत्वाकांक्षा ने फंसाया 'महापेच'
तेत्री के पति साल के अधिकतर हिस्से में बिना नौकरी के रहते हैं और तेत्री अपने छह सदस्यीय परिवार का जीवनयापन करती हैं. उनके परिवार में चार बेटियां हैं जिसमें से अंशू सबसे छोटी है. तेत्री रांची के बाहर पाहान टोली गांव में हडिया बेचती है, जो चावल से बनने वाली बीयर है. फुटबाल ने उनको और उनकी बेटी को सपने देखने का कारण दिया है.
अंशू ओएससीएआर ( समाजिक सुधार, जागरुकता, जिम्मेदारी के लिए बने संगठन) के फुटबाल ट्रेनिंग प्रोग्राम से जुड़ी हैं ,जो रांची के बाहर छारी हुजिर में चलाया जाता है. इसने अपने पांच साल पूरे कर लिए हैं. उन्होंने न सिर्फ झारखंड में राष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में हिस्सा लिया बल्कि प्रदेश की उन आठ लड़कियों में शामिल रहीं, जिन्हें ग्रेट ब्रिटेन का टूर करने का मौका दिया,जो ओएससीएआर की मुहिम का हिस्सा था.
फुटबाल के माध्यम से 200 लड़कियों के जीवन में बदलाव आसान नहीं रहा. इन सभी ने फुटबाल को तब चुना जब इनके रास्ते में समाज, गरीबी, एक समय का खाना खाने की चुनौती, बाल विवाह की धमकियां और परिवार का विरोधा जैसी चुनौतियां थीं. इन सभी परेशानियों से यह लोग रांची से 30 किलोमीटर दूर अपनी लड़ाई फुटबाल के माध्यम से लड़ रही हैं.
स्थानीय कॉलेज में कॉमर्स की छात्रा शीतल टोप्पो को जब पता चला कि वह फुटबाल फॉर होप मूवमेंट के कारण फीफा विश्व कप-2018 का मैच देखने रूस जाएंगी तो उन्हें एक पल के लिए विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि जब वह पहली बार मैदान पर फुटबाल खेलने के लिए उतरी थीं तो सही से किक भी नहीं कर पाती थीं. शीतल ने याद करते हुए कहा, "जब मैं खेल के परिधान और जरूरी सामान पहन कर मैदान पर उतरी थी तो इस बात का डर मुझे सता रहा था कि लोग बाग मेरे बारे में क्या कहेंगे."
शीतल के लिए हालांकि यह खेल बुरा नहीं रहा. उन्होंने वहां आई हुईं विश्व भर की बाकी लड़कियों के साथ दोस्ताना मैच खेला और ब्राजील की एक लड़की बारबरा के साथ दोस्ती करने में भी सफल रहीं. उन्होंने कहा, "फुटबाल ने समाज में मेरी स्थिति को बदला है और इसके बिना मैं स्कूल से भी बाहर हो जाती जैसे गांव की अन्य लड़कियां हुई हैं."
शीतल ने न सिर्फ अपने बड़े भाई को आगे की पढ़ाई दोबारा शुरू करने के लिए प्रेरित किया बल्कि गांव के अन्य बच्चों को उस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया जिसके माध्यम से फुटबाल ने उनकी जीवन में बदलाव लाया. अंशू और शीतल की तरह कई लड़कियां फुटबाल के माध्यम से आगे बढ़ रही हैं और पहचान बना रही हैं.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Chanakya Niti: चाणक्य नीति क्या है, ग्रंथ में लिखी ये बातें गांठ बांध लें, कभी नहीं होंगे परेशान
-
Budhwar Ganesh Puja: नौकरी में आ रही है परेशानी, तो बुधवार के दिन इस तरह करें गणेश जी की पूजा
-
Sapne Mein Golgappe Khana: क्या आप सपने में खा रहे थे गोलगप्पे, इसका मतलब जानकर हो जाएंगे हैरान
-
Budhwar Ke Upay: बुधवार के दिन जरूर करें लाल किताब के ये टोटके, हर बाधा होगी दूर