देश के इस राज्य में बढ़ा आत्महत्या करने का ग्राफ, रिपोर्ट में आया सामने

यह देख ऐसा लगता है मानो रांची सुसाइड सिटी बनती जा रही है.

यह देख ऐसा लगता है मानो रांची सुसाइड सिटी बनती जा रही है.

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yogesh bhadauriya
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देश के इस राज्य में बढ़ा आत्महत्या करने का ग्राफ, रिपोर्ट में आया सामने

रिपोर्ट में आया सामने

झारखंड की राजधानी रांची में बीते कुछ सालों में आत्महत्या की घटनाओँ में इजाफा हुआ है. यह देख ऐसा लगता है मानो रांची सुसाइड सिटी बनती जा रही है. यहां आत्महत्या की घटनाएं इतनी हो रही हैं कि हर दो दिन में औसतन एक व्यक्ति आत्महत्या कर अपनी जान दे रहा है. हर उम्र के लोग आत्महत्या कर रहे हैं. कभी परीक्षा में कम नंबर, कभी आर्थिक तंगी तो कभी प्रेम प्रसंग इसका कारण है.

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जून महीने का बात करें तो यहां 1 जून से 30 जून तक 12 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी. आत्महत्या करने वाले 12 लोगों में जहां सात लोगों ने परिवारिक कलह और मानसिक तनाव की वजह से आत्महत्या कर ली. तो वहीं पांच लोगों ने नौकरी नहीं मिलने और परीक्षा में कम नंबर आने या फेल होने की वजह से अपनी जान दे दी.

जांच में सामने आया है कि आत्महत्या करने वाले लोगों में अधिकतर युवा शामिल हैं. धुर्वा थाना क्षेत्र के रहने वाले युवक राहुल कुमार और लोअर बाजार थाना क्षेत्र की रहने वाली दिव्या कुमारी ने पढ़ाई के बाद नौकरी नहीं मिलने की वजह से अपनी जान दे दी. वहीं नामकुम के रहने वाले फुल्लित खलखो, राजकीय पॉलटेक्निक की छात्रा मोनिका हेंब्रम और लालपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले विशाल कुमार ने परीक्षा में कम नंबर आने की वजह से आत्महत्या कर ली. धुर्वा में राजवंश सिंह, सदर थाना क्षेत्र में गुड़िया देवी और सुखदेव नगर थाना क्षेत्र में प्रमोद कुमार, टाटीसिलवे में एक युवक, जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र के लटमा में रहने वाली एक महिला और सिरम टोली में रहने वाले पाहन राहुल हंस ने पारिवारिक विवाद और मानसिक तनाव के कारण अपनी जा दे दी.

आत्महत्या में युवाओं का ग्राफ जेजी से बढ़ता जा रहा है. इस तरह की घटनाओं के पीछे यह वजह मानी जा रही है कि आज कल युवाओं में धैर्य की कमी हो गई है. पिछले 30 दिनों में आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर युवा वर्ग के लोग शामिल हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल आत्महत्या में करीब 27.6 फीसदी आत्महत्याओं का कारण पारिवारिक समस्या है. जबकि करीब 26 फीसदी लोग अन्य कारणों से अपनी जान दे देते हैं. भारत में अलग-अलग स्तर पर युवाओं को आत्महत्या से रोकने के लिए कई तरह के कदम उठाये गये हैं. इसमें स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक कोशिश की जा रही है.

Source : Mukesh sinha

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