नक्सल इलाके में नहीं खुलता स्कुल (Photo Credit: News State Bihar Jharkhand)
Garhwa:
गढ़वा का बूढ़ा पहाड़ जो कभी भाकपा माओवादियों के कब्जे में था, आज वह मुक्त हो चुका है. बावजूद इसके इस क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों की हालत शिक्षकों की मनमानी से मुक्त नहीं हो सका है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र के बच्चे आजतक अशिक्षित हैं. विद्यालय तो है, लेकिन शिक्षक नदारद हैं. सिर्फ हाजरी बनती है और सरकारी तनख्वाह भी शिक्षक उठाते हैं, लेकिन पढ़ाई जीरो बटा जीरो है. गढ़वा जिले का भंडरिया और बढ़गढ़ ये दोनों ऐसे क्षेत्र हैं, जहां आदिम और विलुप्त प्राय जनजाति के लोग अपना जीवन बसर करते हैं. इनके बच्चे आज भी अनपढ़ और अशिक्षित है. यहां के बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तो नहीं गिरावट जरूर आई है. बच्चे ठीक से अपना नाम भी नहीं लिख पाते, वजह है सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की मनमानी.
बूढ़ा पहाड़ से सटा हुआ क्ष्रेत्र हेसातु, कुल्हि, तुरेर, तुमेरा, खपरी महुवा, बूढ़ा सहित अन्य ऐसे गांव हैं, जहां वर्षों से सरकारी विद्यालयों में शिक्षक ने अब तक अपना दर्शन नहीं दिये है, हां यह जरूर है माह के अंत मे मध्याह्न भोजन के राशन का हिसाब, अपने हाजरी का हिसाब और तनख्वाह जरूर उठता है. इस क्षेत्र में शिक्षक नक्सलियों का भय दिखाकर नहीं आते और अपनी जगह गांव के किसी व्यक्ति को कुछ रुपये खर्च कर बच्चों के पढ़ाने की व्यवस्था करते हैं. मुखिया ने कहा कि इस गांव में विद्यालय तो है पर शिक्षक के नहीं आने से बच्चे भी नहीं आते हैं. ग्रामीणों ने भी कहा कि शिक्षक का अता पता नहीं है तो बच्चे कहा से आएंगे.
नक्सलियों के खिलाफ इस क्षेत्र में हमेशा अभियान चलाया जाता रहा है, जिसकी वजह से बूढ़ा पहाड़ मुक्त हो चुका है, लेकिन जिले के एसपी को एक कसक थी इस क्षेत्र के विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति में सुधार हो. एसपी ने कहा कि शिक्षक विद्यालयों में आते नहीं हैं. ग्रामीणों ने इसके लिए शिकायत की है, जिला स्तर पर हम जाकर पहल करेंगे. जिले के डीसी रमेश घोलप ने कहा कि आपके द्वारा यह सूचना मिली है, अगर ऐसी बात है तो हम जांच कर रहे हैं, शिक्षक विद्यालय जरूर जाएंगे.
रिपोर्टर- धर्मेन्द्र कुमार