बेटे की स्कूल फीस के लिए कर्ज में डूबा पिता, फिर भी नहीं देने दिया एग्जाम
निजी विद्यालयों की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. कुछ ऐसा ही एक मामला झारखंड के बोकारो से सामने आया है.
highlights
- कर्ज लेकर पिता पहुंचा बेटे की फीस जमा करने
- फिर भी छात्र को नहीं देने दिया एग्जाम
- बढ़ती जा रही है निजी स्कूलों की मनमानी
Bokaro:
निजी विद्यालयों की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. कुछ ऐसा ही एक मामला झारखंड के बोकारो से सामने आया है. जहां आठवीं में पढ़ने वाले छात्र ने समय से फीस नहीं भरा तो उसे चिराचास स्थित पांडा इंटरनेशनल स्कूल के द्वारा परीक्षा से वंचित कर दिया गया. वहीं शुक्रवार को जब छात्र के पिता ने किसी से कर्ज लेकर फीस जमा करने पहुंचे तो छात्र को स्कूल में परीक्षा देने की तो दूर, उसे विद्यालय में घुसने तक नहीं दिया गया. जिसके बाद स्कूल की इस मनमानी की शिकायत लेकर छात्र और उसके पिता जिला शिक्षा अधीक्षक के पास पहुंचे. जहां उन्होंने अपनी फरियाद लगाई.
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फीस की वजह से छात्र को किया परीक्षा से वंचित
पूरा मामला जानने के बाद जिला शिक्षा अधीक्षक नूर आलम खाने ने स्कूल की प्रिंसिपल को फोन कर उसे फटकार लगाई. इसके साथ ही कहा कि अगर छात्र को परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा तो स्कूल प्रबंधन पर कार्रवाई की जाएगी. जिला शिक्षा अधीक्षक ने यह भी कहा कि आरटीई के तहत इस तरह की हरकत करने वाले विद्यालयों पर कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान है क्योंकि किसी भी छात्र को फीस जमा नहीं करने की वजह से परीक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता है.
कर्ज लेकर पिता पहुंचा फीस जमा करने
बता दें कि छात्र मोहम्मद फैज अख्तर चास भर्रा के रहने वाला है. छात्र चिरा चास स्थित पांडा इंटरनेशनल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है. दिसंबर महीने का फीस जमा नहीं करने की वजह से उसे पहले परीक्षा में स्कूल के द्वारा बैठने नहीं दिया गया और छात्र को दिन भर से स्कूल में खड़ा रखा गया. स्कूल की प्रिंसिपल ने बच्चे से कहा कि पिता के द्वारा मीडिया और अधिकारियों की पैरवी दिखाने से परीक्षा नहीं देने देंगे. जिसके बाद शुक्रवार को छात्र के पिता नसीम अख्तर ने कर्ज लेकर सुबह फीस जमा किया. स्कूल प्रबंधन ने फीस ले भी लिया, लेकिन उसे परीक्षा देने के लिए स्कूल के अंदर प्रवेश नहीं करने दिया.
बढ़ती जा रही है निजी स्कूलों की मनमानी
विद्यालय के इस हरकत से छात्र और उसके पिता आहत हैं. आखिर तमाम प्रावधान होने के बावजूद इस तरह से स्कूल की मनमानी कब तक चलेगी? क्या फीस के लिए किसी छात्र के भविष्य के साथ खेलना स्कूल प्रबंधन के द्वारा उचित है?
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