प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है, लेकिन स्कूलों के जर्जर भवनों की मरम्मत का कार्य नहीं कराया जा रहा है. ऐसे में बच्चे स्कूलों के जर्जर भवन में पढ़ने के लिए मजबूर है. स्कूलों के खस्ताहाल भवनों को देख अभिभावक भी बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं. मामला पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड क्षेत्र के धनगड़ा गांव का है, जहां प्राथमिक विद्यालय धनगड़ा में स्कूली बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने पर मजबूर हैं. पाकुड़ जिले में 100 से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं, जिनमें नौनिहाल खतरों के बीच पढ़ने के लिए मजबूर हैं. किसी की छत जर्जर है तो किसी का छज्जा. एक ही कमरे में पांच-पांच कक्षाएं चलाई जा रही हैं. बारिश के साथ ऐसे स्कूलों में छुट्टी की घंटी बज जाती है.
सही सलामत कमरे ना होने पर दूसरे स्थानों पर पढ़ाई करानी पड़ती है. इस तरह में स्कूल के बच्चे अपना भविष्य गढ़ने के लिए पहुंचते हैं, लेकिन धनगड़ा के स्कूल में जहां रोज छोटे-छोटे बच्चों की जान खतरे में रहती है. जिम्मेदार कान में तेल डाले हुए सोये हैं. शिक्षा के इस मंदिर में बच्चे खतरों के बीच डर के साये में पढ़ाई कर रहे हैं. स्थिति ऐसी है कि स्कूल छत का प्लास्टर कभी भी उखड़कर गिर सकता है और कभी भी अनहोनी हो सकती है.
जो कभी भी खतरे का कारण बन सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्कूल के लिए नये भवन की स्वीकृति बहुत पहले ही मिल चुकी है. यहां तक कि ठीक पुराने स्कूल के सामने ही बिल्डिंग का निर्माण भी हो रहा है लेकिन कई दिनों से निर्माण कार्य बंद पड़ा हुआ है. वहीं शिक्षिका का कहना है कि ठेकेदार की मौत हो जाने के बाद स्कूल का निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप हो गया है, जिस वजह से बच्चों और शिक्षकों की उम्मीदों की किरण पर अंधेरा सा छा गया है.
Source : News Nation Bureau