रमेश बैस ने चुनाव आयोग से फिर मांगी राय, हेमंत सरकार पर मंडरा रहा खतरा
राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि दिल्ली में पटाखा बैन है, झारखंड में नहीं. झारखंड में एक आध एटम बम फट सकता है. राज्यपाल ने यह बात चुनाव आयोग से दो माह पहले पहुंचे मंतव्य पर अपना फैसला नहीं सुनाए जाने के सवाल पर कही है.
Ranchi:
सीएम हेमंत सोरेन को लेकर राज्यपाल रमेश बैस ने फिर बड़ा बयान दिया है. जिससे राजनीति में भूचाल सा आ गया है. राज्यपाल अभी अपने गृह शहर रायपुर में हैं. एक निजी चैनल को दिए बयान से झारखंड का सियासी पारा फिर से चढ़ गया है. राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में राज्यपाल ने कहा कि दिल्ली में पटाखा बैन है, झारखंड में नहीं. झारखंड में एक आध एटम बम फट सकता है. राज्यपाल ने यह बात चुनाव आयोग से दो माह पहले पहुंचे मंतव्य पर अपना फैसला नहीं सुनाए जाने के सवाल पर कही है.
निर्वाचन आयोग से सेकंड ओपिनियन आने के बाद लूंगा निर्णय
उन्होंने कहा कि मैं एक संवैधानिक पद पर हूं, इसलिए मैं नहीं चाहता कि कोई मुझपर यह आरोप लगाए कि मेरा फैसला बदले की भावना से लिया गया है. यदि सरकार को अस्थिर करने की मंशा होती तो निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर निर्णय ले सकता था. यही वजह है कि मैंने सीएम से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में निर्वाचन आयोग से सेकंड ओपिनियन मांगा है. साथ ही कहा कि जबतक गवर्नर संतुष्ट नहीं हो जाये तबतक आर्डर करना ठीक नहीं है. इसलिए निर्वाचन आयोग से सेकंड ओपिनियन आने के बाद निर्णय लूंगा कि आगे मुझे क्या करना है.
ऐसा प्रविधान नहीं कि आदेश की प्रतिलिपि दी जाए
उन्होंने कहा कि जैसे ही चुनाव आयोग का पत्र उनके पास आया तो राजनीतिक हलचल चालू हो गई. घबराने की कोई बात नहीं है. जो होना है, वह होगा. मीडिया में कई प्रकार की अटकलें लगाई गई. मेरे पास झामुमो का प्रतिनिधिमंडल आया. प्रतिनिधिमंडल ने आयोग के पत्र की कापी मांगी।.ऐसा प्रविधान नहीं है कि आदेश की प्रतिलिपि दी जाए. उसके बाद वे चुनाव आयोग में भी गए, अपील की. चुनाव आयोग ने भी इन्कार कर दिया. यह संवैधानिक मामला है. गवर्नर संवैधानिक पद संभाल रहे हैं. यह राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है और वे बाध्य नहीं हैं कि कब वे पत्र पर कार्रवाई करें. उसके बाद मामला शांत है. सब बढ़िया से दीवाली मना रहे हैं.
सरकार गिराने की कोई मंशा नहीं
राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि सरकार को अस्थिर करने की मंशा होती तो चुनाव आयोग की सिफारिश पर निर्णय ले सकता था. लेकिन नहीं चाहता था कि बदले की भावना या बदनाम करने के लिए मैं कार्रवाई करूं. मैं संवैधानिक पद पर हूं और मुझे संविधान की रक्षा करना और उसके मुताबिक चलना है. यही कारण है कि मेरे ऊपर कोई अंगुली नहीं उठाए कि मैंने बदले की भावना से काम किया है, मैं सेकेंड ओपिनियन ले रहा हूं.
बता दें कि, हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर ऊहापोह की स्थिति पिछले दो महीने से बनी हुई है. लंबी सुनवाई के बाद 25 अगस्त को भारत निर्वाचन आयोग ने गवर्नर को मंतव्य दे दिया था, लेकिन एक बार फिर चुनाव आयोग के पाले में गेंद डाल दी गई है.
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