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दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड का गांव है
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दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड का गांव है
झारखंड के दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में एक ऐसा गांव है जहां आजादी के 72 साल वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां के लोग एक गंदे तालाब के सहारे गले की प्यास बुझाने को मजबूर हैं. इंसान तो इंसान जानवर और पशु पक्षी भी इसी तालाब का पानी पीते हैं. प्रतिवर्ष करोड़ों रुपया सरकार को राजस्व देने वाले इस क्षेत्र से प्रतिवर्ष विकास के नाम से राजस्व की 30 फीसदी राशि जमा होती है. लेकिन विकास के नाम पर यहां लोग बूंद- बूंद शुद्ध पानी के लिए तरस रहे हैं जिसे देखने वाला कोई नहीं है.
देश में जल के गहराते संकट से दुमका जिला भी अछूता नहीं रहा है. जिले के ज्यादातर स्थानों में पेयजल की किल्लत से लोग परेशान हैं और प्यास बुझाने के लिए गंदे तालाब और गड्ढ़े का सहारा ले रहे हैं. यहां, आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस गांव के लोग इसी गंदे तालाब का पानी-पीने को मज़बूर हैं. तालाब के इस गंदे पानी में जहां कूड़ा कर्कट है वहीं शैवाल भी भरा पड़ा है. लोग इसे देखकर अपना हाथ भी धोना पसंद नहीं करेंगे, लेकिन यहां के वेवश लोग इस पानी से अपनी गले की प्यास बुझा रहे हैं. यही नहीं बल्कि इस पानी से नास्ता, खाना भी बनाकर खा रहे है.
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यह हाल सिर्फ गर्मियों के मौसमों में नहीं बल्कि पिछले 72 वर्षो से यही नज़ारा देखने को मिल रहा है. हर आदमी सुबह होते ही पानी के लिए हाथ में बाल्टी लिए तालाब की ओर निकल पड़ता है. क्योंकि यहां पानी की व्यवस्था के लिए कोई दुसरा विकल्प नहीं है. भले ही सरकार द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता का अभियान चलाकर प्रति वर्ष करोड़ों रुपया पानी कि तरह बहाया जा रहा हो लेकिन बेनागढिया गांव के लोगों को आज भी शुद्ध पानी नसीब नहीं हो पाया है. सरकार द्वारा पानी के लिए गांव में लगाया गया हेण्डपम्प और डीप बोरिंग सप्लाई वाटर पिछले कई सालों से ख़राब पड़ा है जिसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है.
दुमका जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर है. 3500 की आबादी वाले इस गांव के लोग इस गंदे तालाब के सहारे जीवित हैं और इसी तालाब में इंसान और जानवर दोनों अपनी प्यास बुझाते रहे हैं. मुकेश मज़दूर, नूर मोहम्मद, शमशाद मिया, विजय यादव , मलय, दशमी जैसे दर्जनो ग्रामीणों ने सरकार को अनदेखी करने का आरोप लगाया है. ग्रामीणों के अनुसार सरकार कहती है सबका साथ सबका विकास, लेकिन क्या यहां सरकार को यह गांव नजर नहीं आता. सिर्फ सरकार राजस्व का रुपया लेना जानती है. विकास करना नहीं, आज गंदे पानी के कारण कई लोग बीमार हो जाते हैं जहां लोगों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यही नहीं यहां के कई लोग स्नान करने के लिए गांव से करीब तीन किमी दूर बंद गहरे खतरनाक खदान में चले जाते हैं. साथ में स्नान के लिए अपने बच्चे को भी ले जाते हैं. जबकि खदान पानी से लबालब भरा पड़ा है यदि कोई गिर जाये तो बचाना सौ फीसदी मुश्किल है. लेकिन व्यवस्था से गांव के दूरबीन दास और कन्हैया लाल जैसे लाचार ये परिवार इस बारूद भरे इस प्रदूषित पानी सिर्फ स्नान करते है. जबकि पीने के पानी के लिए तालाब का सहारा लेते है. कहते है सरकार की नज़र इस गांव पर नहीं है सिर्फ वोट के समय नेता झूठा दिलासा देने आते हैं फिर दिखाई नहीं पड़ते. अगर सरकार की इच्छाशक्ति रहती तो इस खदान के पानी को फ़िल्टर कर सप्लाई करती तो हमें पानी के संकट से जूझना नहीं पड़ता.
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गौरतलब है कि प्राकृतिक के गोद में अकूत खनिज सम्पदा से भरा इस क्षेत्र में सैकड़ों वैध, अवैध माइंस और पत्थर खदान चलते हैं. प्रति वर्ष सरकार को इस पत्थर उद्योग क्षेत्र से करोड़ों रुपया राजस्व मिलता है. जिसमे खास कर खदान क्षेत्र में रहने वाले लोगों के विकास के लिए DMFT (डिस्ट्रिक्ट मिनिरल्स फाउंडेशन फॉर ट्रस्ट) से राजस्व का 30 फीसदी राशि खर्च करनी है. लेकिन यह राशि कहां जाती है इसको किसी को जानकारी अब तक नहीं है. सूत्रों के मुताबिक अबतक 11 करोड़ डीएमएफटी की राशि पड़ी हुई है. लेकिन यह राशि विवाद के कारण खर्च नहीं हो पायी है. यहां के व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्ता रामनारायण भगत के मुताबिक सरकार की अगर इच्छा शक्ति रहती तो यहां बंद पड़े खदानों में जमा लाखों गैलन लीटर पानी फिल्टर कर लोगों के इलाको तक पंहुचा सकती थी जिससे एक पंचायत ही नहीं बल्कि कई पंचायतों को शुलभ पानी सप्लाई कर जल संकट से लोगों को निजात दिलायी जा सकती है. लेकिन सरकार की इच्छा शक्ति में कमी के कारण व्यवसायी भी पीड़ित है और पानी के संकट के कारण या तो खरीद कर या फिर उसी गंदे तालाब का पानी पीने को बाध्य हैं.
बता दे सरकारी आंकड़े के मुताबिक पूरे दुमका जिले में 25 हज़ार चापानल (हैंडपंप) हैं जिसमे विभाग 18 से 20 हज़ार चालू रहने का दावा कर रहा है. जबकि गांव में ठीक इसके उलट है. गांव में पानी के लिए हाहाकार मचा है लोग पानी के लिए सड़क पर भी कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं.
Source : Bikash Prasad Sah