नाले का पानी पीने को मजबूर हैं झारखंड में विलुप्त हो रहे आदिम जनजाति

बिरहोर नाले के पानी पर आश्रित है. यूं तो झारखंड की पहचान खनिज संपदा के अलावा जल जंगल और जनजातीय बहुल प्रदेश से भी जानी जाती है.

बिरहोर नाले के पानी पर आश्रित है. यूं तो झारखंड की पहचान खनिज संपदा के अलावा जल जंगल और जनजातीय बहुल प्रदेश से भी जानी जाती है.

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Vineeta Kumari
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झारखंड में विलुप्त हो रहे आदिम जनजाति( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

बिरहोर नाले के पानी पर आश्रित है. यूं तो झारखंड की पहचान खनिज संपदा के अलावा जल जंगल और जनजातीय बहुल प्रदेश से भी जानी जाती है. सरकार इन लुप्त होती बिरहोर जनजातियों को बचाने के लिए इन्हें जगह देकर बसाने का काम किया और मूलभूत सुविधाएं देकर इन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रही है. बोकारो में गोमिया विधानसभा क्षेत्र के तुलबुल पंचायत, सियारी पंचायत, कुंदा पंचायत और बड़की सीधावारा पंचायत में कुल मिलाकर लगभग 103 परिवारों को मिलाकर लगभग 350 की जनसंख्या होगी. जिन्हें मुख्यमंत्री डाकिया योजना के तहत प्रत्येक परिवार को चावल उपलब्ध कराया जाता है. बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा सभी बिरहोर परिवार के लिए जिला कल्याण विभाग के द्वारा बिरसा आवास योजना के तहत आवास निर्गत कराया गया है.

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साथ ही मुफ्त चिकित्सा सुविधा, बिजली और पेयजल भी सरकारी योजना के तहत देने का दावा करती है. वहीं अगर सीयारी पंचायत अंतर्गत डुमरी विरहोर टण्डा की बात की जाए तो यहां लगभग 101 बिरहोर जनजाति को 2013 में बसाया गया रहने के लिए एक कमरे का आवास और खाने के लिए अनाज सरकार इन जनजातियों के लिए व्यवस्था कर दी गई. मगर पेयजल के लिए इन विरहोर को नाले के पानी के भरोसे ही रहना पड़ता है. इन्हें 0.5 किलो मीटर दूर पैदल जाकर चरक पनिया नाला से पानी भरकर लाना पड़ता है. जिससे उन्हें पीने से लेकर खाना बनाने तक और नहाने के लिए भी उसी पानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.

सरकार ने इनके लिए बिजली की भी व्यवस्था कर रखी है, जिसके लिए इन्हें बिजली बिल का भुगतान नहीं करना पड़ता है. सरकार के तरफ से आवास, चावल, नमक व घासलेट मुहैया करा दी जाती है. जिसके बाद सरकार के अधिकारी पलट कर दुबारा संज्ञान भी नहीं लेते हैं. आवास की हालत ऐसी है कि बिरहोर अब उस आवास में ना रह कर बगल में झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर है. जब से आवास बना है, उसके बाद से इसके खिड़की दरवाजे और छप्पर की हालत ऐसी है कि हल्की बरसात भी झेलना मुश्किल है.

पूरी तरह से सड़ चुके इन छप्पर और खिड़की दरवाजे से बरसात का पानी पूरे कमरे में भर जाता है. पीने के लिए जल मीनार भी बनाया गया है और नल भी लगाया गया है. मगर साल भर हो गए, इस नल से पानी यहां रह रहे बिरहोरों को नहीं मिल पाई. पुरी आबादी इस नाले के पानी पर आश्रित हो गया है. यह नाले का पानी इन लोगों के लिए कितना सुरक्षित है या घातक है, यह कह पाना कठिन है. इन लोगों के प्रति अधिकारियों की कितनी उदासीनता है, जिस पर इनकी नजर यहां नहीं पड़ती.

वहीं जिला कल्याण पदाधिकार इन को दी जाने वाली योजना को गिनाने से नहीं थकते, लेकिन धरातल पर जो स्थिति और समस्याएं बनी हुई है. इसकी जानकारी उन्हें नहीं है, लेकिन उनके संज्ञान में आने के बाद इसको जांच करा कर जल्द ही समस्याओं को दूर करने का की बात कहते हैं.

Source : News Nation Bureau

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