पत्थलगड़ी: 7 लोगों की सामूहिक हत्या के बाद बढ़ी नरसंहार की आशंका

कथित तौर पर पत्थलगड़ी से उपजे विवाद के बाद इस घटना को लेकर नरसंहार की आशंका बढ़ गई है.

कथित तौर पर पत्थलगड़ी से उपजे विवाद के बाद इस घटना को लेकर नरसंहार की आशंका बढ़ गई है.

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Dalchand Kumar
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पत्थलगड़ी: 7 लोगों की सामूहिक हत्या के बाद बढ़ी नरसंहार की आशंका

झारखंड के कई इलाकों में सुलग रही पत्थलगड़ी की आग!( Photo Credit : फाइल फोटो)

झारखंड (Jharkhand) के पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड के बुरुगुलिकेला में पत्थलगड़ी समर्थक द्वारा कथित तौर पर 7 पत्थलगड़ी विरोधियों की सामूहिक हत्या (Murder) की घटना के बाद राज्य के कई क्षेत्रों में दहशत का माहौल है. कथित तौर पर पत्थलगड़ी से उपजे विवाद के बाद इस घटना को लेकर नरसंहार की आशंका बढ़ गई है. उल्लेखनीय है कि पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत वाले खूंटी क्षेत्र के लोगों की इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है. सूत्रों का कहना है कि खूंटी (Khunti) क्षेत्र में जहां इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, वहां लोग अब इसकी वर्षगांठ मनाने की भी तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में समय रहते अगर सरकार (Government) ने उचित कदम नहीं उठाया, तो शांतिप्रिय आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत और हिंसक रास्ते पर भटक सकता है.

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गौरतलब है कि झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर पुलिस और ग्रामीणों के बीच लंबा संघर्ष हुआ था, जिसमें कुछ लोगों की जानें भी गई थीं. झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता और झारखंड नरेगा वॉच के संयोजक जेम्स हेरेंज ने आईएएनएस से कहा, 'सरकार ने न तब संवेदनशीलता को समझा था और न ही अब वह इसकी गंभीरता को समझ रही है. शांतिप्रिय आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत है. सरकार को पक्ष और विपक्ष को समझाने की जरूरत है.' उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी कोई नई प्रथा नहीं है. पत्थलगड़ी उन पत्थर के स्मारकों को कहा जाता है, जिसकी शुरुआत काफी पुरानी है. आज भी यह आदिवासी समाज में प्रचलित है.

वह बताते हैं, 'आदिवासी समाज में सरकार को लेकर डर और गुस्सा था. उनके बीच यह चर्चा थी कि सरकार जंगल और जमीन का अधिकार पूंजीपतियों को सौंपने जा रही है. पिछली सरकार ने कई नीतियां बनाई, जिससे आदिवासियों में यह डर पनपा कि खनन और औद्योगिकीकरण के नाम पर उन्हें उजाड़ा जाएगा.' अब चाईबासा की घटना के बाद खूंटी समेत रांची जिले के बुंडु और तमाड़ में दहशत और तनाव का माहौल है. इन इलाकों में खूनी संघर्ष की आंशका बनी हुई है.

सूत्रों का कहना है कि खूंटी जिले के अड़की इलाके में नक्सलियों ने भी पत्थलगड़ी का समर्थन किया था. हालांकि, पुलिस इस घटना के बाद खूंटी में पैनी नजर रखे हुए है. पुलिस ने प्रत्येक सूचना तंत्र को इस पर नजर रखने का निर्देश दिया है. खूंटी के पुलिस अधीक्षक आशुतोष शेखर ने दो दिन पूर्व जिले के सभी थाना प्रभारियों और अधिकारियों से इस मामले को लेकर चर्चा की थी.

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गौरतलब है कि 25 जून, 2018 को पत्थलगड़ी समर्थकों और पुलिस के बीच खूंटी के घाघरा गांव में झड़प हुई थी. उस समय से ही यह आंशका जताई जा रही थी कि पत्थलगड़ी आंदोलन की आग पूर्णत: बुझी नहीं है. इसके बाद पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड की इस घटना ने इस आंशका को सच साबित कर दिया. पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ था, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए थे. इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया.

यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था. यह आंदोलन अब भले ही शांत पड़ गया है, लेकिन ग्रामीण उस समय पुलिस द्वारा हुए अत्याचार को नहीं भूले हैं. खूंटी पुलिस ने तब पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए थे, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया था. लेकिन हेमंत सोरेने के मुख्यमंत्री बनने के बाद पत्थलगड़ी से जुड़े सभी मामले वापस लेने का सरकार ने निर्णय लिया.

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