logo-image

Hazaribagh News: मशरूम की खेती बनी वरदान, ग्रामीण महिलाएं कर रही हैं अच्छी कमाई

हजारीबाग में महिलाएं मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही है. सुदूर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए मशरूम की खेती वरदान साबित हो रही है. खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ ही अब ये महिलाएं औरों को भी रोजगार से जोड़ने की पहल कर रही हैं.

Updated on: 29 May 2023, 02:11 PM

highlights

  • मशरूम की खेती बनी वरदान 
  • ग्रामीण महिलाएं बनी आत्मनिर्भर
  • महिलाएं औरों को भी दे रहीं रोजगार
  • कम लागत में हो रही अच्छी कमाई

Hazaribagh:

हजारीबाग में महिलाएं मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही है. सुदूर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए मशरूम की खेती वरदान साबित हो रही है. खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ ही अब ये महिलाएं औरों को भी रोजगार से जोड़ने की पहल कर रही हैं. हजारीबाग जिले के दोनोंरेसाम गांव में जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है, लेकिन यहां की महिलाओं के इरादे पक्के हैं. घने जंगलों के बीच बसे इस गांव की महिलाएं मशरूम की खेती कर आज मिसाल बन रही हैं. इस गांव की 30  महिलाओं ने अपने हौसलों से ना सिर्फ खुद को सशक्त बनाया बल्कि आस-पास की दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन रही है. ये महिलाएं अपने-अपने घरों के एक या दो कमरों में ही मशरूम का उत्पादन कर रही है, जिससे इनकी अच्छी कमाई हो रही है.

ग्रामीण महिलाएं बनी आत्मनिर्भर

महिलाएं जिस मशरूम की खेती कर रही हैं उन्हें ढिंगरी मशरुम या इंग्लिश में ऑस्टर मशरूम कहते हैं. इस मशरूम को अंधेरे कमरे में उगाया जाता है. मशरूम को तैयार होने में करीब 45-60 दिनों का समय लगता है. उसके बाद मशरूम को तोड़ कर पैक कर दिया जाता है. फिर पैक हुए मशरूम बाजार में बिकने के लिए जाते हैं. बाजार में इन मशरूम की कीमत 200 प्रति किलो है.

यह भी पढ़ें : Dhanbad News: MPL की छाई डंपिंग से परेशान लोग, जमीन हो रही बंजर

महिलाएं औरों को भी दे रहीं रोजगार

इस मशरूम की खेती में लागत भी ज्यादा नहीं है, लेकिन आमदनी अच्छी हो जाती है. महिलाओं की मानें तो उन्होंने 6 महीने पहले तब खेती की शुरूआत की थी जब उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं था, लेकिन अब वो आत्मनिर्भर बन गई हैं. वो खुद मशरूम बेचने के लिए हज़ारीबाग शहर, चरही और कुजू बाजार जाती हैं. इन सभी महिलाओं को मशरूम की खेती के बारे में सारी जानकारी, ट्रैनिंग और इसकी खेती में लगने वाले सभी सामान संस्थानों की ओर से मुहैया कराती जाती है. ग्रामीण महिलाओं ने साबित कर दिया है कि अगर उन्हें थोड़ी मदद मुहैया कराई जाए तो वो भी आत्मनिर्भर बन सकती हैं, बस जरूरत है थोड़ी जागरुकता की. उम्मीद है कि इन महिलाओं से और ग्रामीण महिलाएं भी सीख लेंगी.

रिपोर्ट : रजत