बोकारो में मां का ऐसा मंदिर, जहां महिलाओं का प्रवेश है वर्जित

शारदीय नवरात्र में जहां पूरा देश एक ओर नारीशक्ति की पूजा कर रहा है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं का पूजा में प्रवेश वर्जित किया जाना अध्यात्म को चुनौती देते हुए एक अनबूझ पहेली बनी हुई है.

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Vineeta Kumari
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बोकारो में मां का ऐसा मंदिर( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

शारदीय नवरात्र में जहां पूरा देश एक ओर नारीशक्ति की पूजा कर रहा है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं का पूजा में प्रवेश वर्जित किया जाना अध्यात्म को चुनौती देते हुए एक अनबूझ पहेली बनी हुई है. महिला श्रद्धालु कहते हैं दूर से भी जो मन्नत मांगते हैं, वो पूरा तो हो जाता है लेकिन मंदिर में घुसकर पूजा करने की इच्छा होती है. जो मान्यता है और जो घटनाएं घट चुकी हैं, उसके कारण डर लगता है क्योंकि जिस मंदिर मे पहले महिला घुसी थी. वहां अब पूजा नहीं होती है, भगवान ने सपने में पुजारी को स्थान परिवर्तन करने को कहा और कहा कि यहां महिलाएं प्रवेश ना करें. तब से बगल में ही एक और मंदिर बना दिया गया और वहीं पूजा अर्चना होने लगी है. मां को सिन्दूर बहुत पसंद है, इसलिए सिंदूर से मां पूरी तरह से ढकी हुई रहती है. यह मंदिर बोकारो मुख्यालय से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर कसमार प्रखंड के टांगटोना पंचायत के कुसमाटाड़ गांव में है.

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महिलाएं 100 फिट दूर से ही मां मंगलचंडी की पूजा करती है. इतनी ही दूरी पर अगरबत्ती जलाकर एक सीमांकन किया हुआ है, जहां से महिलाओं को एक कदम भी आगे नहीं जाना है. महिलाएं और लड़कियां श्रद्धालुओं के प्रसाद व अन्य पूजन सामग्री पुजारी आकर उस सीमांकन से ले जाते है. ऐसा नहीं है कि इन महिलाओं को अछूत मानकर या पुरुष वर्चस्व के कारण मंदिर के बाहर दूर से पूजा करना पड़ता है बल्कि इसके पीछे अंधविश्वास की 100 वर्ष पुरानी मान्यता और महिलाओं में अनहोनी होने का डर है. जिसके मुताबिक ही महिलाएं दूर से मां दुर्गा की उपासना व पूजा अर्चना करती हैं.

मान्यता है कि जब कभी भी कोई महिला मंदिर के अंदर जा कर पूजा करती हैं, तो किसी अनहोनी का शिकार हो जाती हैं. गांव की सैंकड़ों महिलाएं इसकी गवाह हैं और महिलाओं के साथ-साथ पूजारी भी कहते हैं कि एक बार एक महिला ने मंदिर के अंदर घुसकर पूजा करने की कोशिश की और बली दिये हुए बकरे का प्रसाद रूपी मांस खाया तो वो पागल हो गईं. जिसके बाद पूजारी को देवी मंगलचंडी का सपना आया कि आज के बाद से महिला मेरे मंदिर मे ना आये. साथ ही जिस मंदिर में महिला गई थी, उसका स्थान परिवर्तन किया जए और नए स्थान में मुझे स्थापित किया जाय. तब से आज तक महिलाएं मंदिर में ना तो घुसकर पूजा अर्चना करती है और ना ही चढ़ाए हुए बकरे का मांस खाती हैं. यहां बलि चढ़ाये बकरे के सिर को जमीन में गाड़ दिया जाता है और सीमांकित गये क्षेत्र में ही श्रद्धालु बकरे का भोज भात खा लेते हैं. साथ ही जिस पुरानी मंदिर मे महिला घुसी थी, उसी के पास एक नये मंदिर का निर्माण किया गया और वहीं पूजा अर्चना होने लगी.

Source : News Nation Bureau

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