चांद की तरह चमकना चाहती है कोडरमा की चांदनी, मदद करो 'सरकार'

हाथ जरूर चांदनी के नहीं हैं लेकिन आसमान छूने की उसकी चाहत है. एक पैर नहीं हैं चांदनी के, लेकिन इसी एक पैर से चांदनी पूरी दुनिया लांघना चाहती है. जन्म से लेकर अबतक चांदनी ने हिम्मत नहीं हारी. चांदी दिव्यांग हैं लेकिन खुद को वो दिव्यांग नहीं समझती.

हाथ जरूर चांदनी के नहीं हैं लेकिन आसमान छूने की उसकी चाहत है. एक पैर नहीं हैं चांदनी के, लेकिन इसी एक पैर से चांदनी पूरी दुनिया लांघना चाहती है. जन्म से लेकर अबतक चांदनी ने हिम्मत नहीं हारी. चांदी दिव्यांग हैं लेकिन खुद को वो दिव्यांग नहीं समझती.

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Shailendra Shukla
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चांदनी के दोनों हाथ और एक पैर नहीं है( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)

कहते हैं कि मंजिल उसी को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. कोडरमा जिले की रहनी वाली बच्ची चांदनी के ख्वाब बिल्कुल ऐसे ही हैं. हाथ जरूर चांदनी के नहीं हैं लेकिन आसमान छूने की उसकी चाहत है. एक पैर नहीं हैं चांदनी के, लेकिन इसी एक पैर से चांदनी पूरी दुनिया लांघना चाहती है. जन्म से लेकर अबतक चांदनी ने हिम्मत नहीं हारी. चांदी दिव्यांग हैं लेकिन खुद को वो दिव्यांग नहीं समझती. चांदनी ने अपनी दिव्यांगता को अपनी शक्ति बना लिया है और शायद तभी तो कोडरमा के कानीकेंद गांव की रहने वाली चांदनी के जज्बे की कहानी आज हमारे, आपके, पूरे झारखंड के लोगों की जुबान पर है.

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तीन भाई-बहनों में चांदनी सबसे बड़ी हैं और ना सिर्फ अपने भाई-बहनों के लिए बल्कि उन लोगों की हिम्मत बन गई हैं जो दिव्यांगता के आगे अपनी हिम्मत हार जाते हैं. 11 साल की चांदनी अभी पांचवीं में ही पढ़ती है लेकिन अभी से ही उसने सपने को पूरा करना का लक्ष्य बना लिया है. चांदनी का सपना है कि वह बड़ी होकर कलेक्टर बने. चंदनी के पिता किसान, मां घरबार संभालती हैं. चांदनी के माता-पिता को बेटी की दिव्यांगता पर दुख जरूर होता है लेकिन चांदनी की हिम्मत और उसके लग्न से परिवार के लोगों को भी हिम्मत मिलती है. घर से लेकर स्कूल तक लाचारी और बेबसी को चांदनी कभी अपने आड़े नहीं आने देती. बेटी की मेहनत और लगन के आगे परिवार कुर्बान है.

चांदनी की मिसाल की कहानी सरकारी कार्यालय तक भी पहुंची. एक दिव्यांग बच्ची की हौंसलों की उड़ान. परिवार की कुर्बानी को मदद का आश्वासन मिला है. बड़ी होकर डीसी बनने का सपना देखने वाली चांदनी को जिले के डीसी से मदद का भरोसा मिला है. साथ ही चांदनी के टीचर को भी चांदनी पर गर्व है. दिव्यांगों के लिए एक छोटी सी आशा हैं चांदनी. बेबसी के बावजूद चांदनी अपने नाम की तरह जग को रोशन करने में जुटी है और यकीनन इनके जज्बे को एक दिन जरूर उड़ान मिलेगी. हालांकि, उसे सरकार के मदद की दरकरार जरूर है. अगर सरकार की तरफ से उसे थोड़ी भी मदद मिलती है तो चांदनी के हौसलें जितने बुलंद है वह निश्चित ही एक दिन जिले का नाम रौशन कर सकती है.

रिपोर्ट: अरुण वर्णवाल

HIGHLIGHTS

  • कोडरमा की दिव्यांग चांदनी की कहानी
  • डीसी बनना चाहती हैं चांदनी
  • दोनों हाथ और एक पैर नहीं है चांदनी के

Source : News State Bihar Jharkhand

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