पत्थर से बेशकीमती सामान तैयार करते हैं इस गांव के लोग, सरकार नहीं दे रही तवज्जो

इनके द्वारा बनाए गए बेशकीमती सामान पश्चिम बंगाल सहित देश-विदेशों में भी जातें हैं.

इनके द्वारा बनाए गए बेशकीमती सामान पश्चिम बंगाल सहित देश-विदेशों में भी जातें हैं.

author-image
yogesh bhadauriya
New Update
पत्थर से बेशकीमती सामान तैयार करते हैं इस गांव के लोग, सरकार नहीं दे रही तवज्जो

झारखंड के दुमका में है गांव

झारखंड के दुमका में ऐसा एक ऐसा गांव है जहां पूरी बस्ती ने पत्थरों से बेस कीमती सामानों को इजाद कर अपनी रोज़ी रोटी का जरिया बनाया है. इनके द्वारा बनाए गए बेशकीमती सामान पश्चिम बंगाल सहित देश-विदेशों में भी जातें हैं. लेकिन इन कलाकारों द्वारा बनाये गये अमूल्य वस्तुओं की कीमत नहीं मिल पा रही है. सरकारी उदासीनता के कारण इन कलाकारों को अपनी पहचान नहीं मिल पा रही है. ये हस्त शिल्प कलाकार अपना पहचान खोते जा रहे हैं.

Advertisment

झारखंड की उपराजधानी दुमका से करीब 50 किमी दूर शिकारीपाड़ा प्रखंड अंतर्गत ब्राह्मणी नदी के किनारे पाकदाहा गांव है जिसे शिल्पकारों का गांव माना जाता हैृ. इस गांव के लोग शिल्पकला को अपनी रोज़ी-रोटी का हिस्सा मान चुके हैं और अपने बेशकीमती सामानों को तैयार कर दलालों के जरीये पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में बेच अपने और अपने परिवार का पेट भरते हैं.

यह भी पढ़ें- भारतीय रेलवे के 17 ड्राइवरों ने रेलवे को दिया चकमा, अब होगी बड़ी कार्रवाई

इन शिल्पकारों ने अपने बाप-दादाओं द्वारा बनाये गये गुर को अपना कर रोज़ी-रोटी का जरिया बनाया है. अपनी कड़ी मेहनत से पत्थरों को तरास कर एक से बढ़-कर एक सामानों का निर्माण करते हैं. इस कलाकारी में महिलाएं भी कम नहीं हैं, घर की महिलाएं अपनी मेहनत और लगन से इनके साथ देकर सिल लोढ़ी और दीप आदि बनाती हैं. वहीं घर के मर्द पत्थर के सिल लोढ़ी के साथ मूर्ति, सहित एक से बढ़कर एक सामान बनाते हैं.

यह कलाकृति सिर्फ एक घर में ही नहीं बल्कि पूरे गांव में देखी जा सकती है, और पूरा गांव इसी पर आश्रित है. इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां दिल्ली, कोलकाता, बनारस और मुंबई जैसे शहरों में अपनी शान बना चुकी हैं. पूर्व में सरकार ने इस गांव को विकसित करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया था लेकिन सरकारी हाथ उनतक नहीं पहुंच पाए और आज यह गांव सरकार के उदाशीनता के कारण उपेक्षित है.

मिट्टी और फूस के घर में रहने वाले ये कलाकार आर्थिक तंगी से गुजर रहें है. इन्हें अबतक कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाई है. इन्हें आज भी महाजनों पर निर्भर रहना पड़ता है. करीब 10 फीसदी सूद पर गांव में कई महिलाएं स्वयं सेवी संस्था बनाकर इस गुर के जरिये जीविकोपार्जन चला रही है. लेकिन सरकारी उदासीनता और उपेक्षा के कारण ये कलाकार अपनी पहचान नहीं बना पा रहे हैं. बाजार नहीं रहने के कारण इन सामग्रियों को जैसे-तैसे औने-पौने दामों पर बेच कर गुजर करने के लिए बाध्य हैं.

इधर उद्योग विभाग के महाप्रबंधक अवध कुमार ने कहा कि शिल्पकारों को लेकर वर्तमान में झारखंड सरकार गंभीर है. इसको लेकर दुमका मे एक एनजीओ कार्य कर रही है, दुमका मे सरकार इन शिल्पकारों के बेहतरी के लिए ज़मीन एक्यावर की प्रक्रिया शुरू कर दी है जो भविष्य मे शिल्पकारों के लिये मिल का पत्थर साबित होगी. इधर विभाग के महा प्रबंधक ने इन शिल्पकारों के समस्यां समाधान के लिये कई उपाय किये जाने की बात कही है वहीं जिले के उपायुक्त राजेश्वरी बी के मुताबिक झारखण्ड सरकार अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है.

सरकारी उदाशीनता का शिकार शिल्पकला के कलाकारों को अपनी पहचान बनाने में आज अरसों गुजर गए लेकिन इन पर की नजर नहीं पड़ी और ना ही जिला प्रशासन की. महाजनी और दलालों के चंगुल में फसे ये कलाकार आज भी अपने कलाकृति के विकास का रोना रो रहे हैं. सरकार को जरुरत है ऐसे अमूल्य कलाकारों को खोज कर पहचान करने की ताकि उन्हें उचित मुकाम मिल सके.

Source : विकास प्रसाद साह

BJP Jharkhand Jharkhand government dumka Stoneware
      
Advertisment