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1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति अव्यवहारिक और तनाव बढ़ाने वाला- इंदर सिंह नामधारी

हेमंत सरकार 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति बनाने जा रही है. इस फैसले को झारखंड विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने अव्यवहारिक और तनाव बढ़ाने वाला बताया है.

Updated on: 17 Sep 2022, 06:22 PM

Palamu:

हेमंत सरकार 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति बनाने जा रही है. इस फैसले को झारखंड विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने अव्यवहारिक और तनाव बढ़ाने वाला बताया है. हेमंत कैबिनेट ने झारखंड में 1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने का फैसला लिया है, इसका विरोध होना शुरू हो गया है. झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने भी इसे तनाव बढ़ाने वाला और अव्यवहारिक बताया है. उहोंने ये भी कहा कि इस बारे में एक बार फिर से सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए. 1932 खतियान आधारित होगी स्थानीय नीति, ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला राज्य में पहली बार 2002 मे 1932 के खतिहान के दौरान हुए हंगामे के दौरान इंदर सिंह नामधारी विधानसभा के अध्यक्ष थे. झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि 1932 के खतिहान पर फैसला तनाव बढ़ाने वाला है. 

यह फैसला पूरी तरह से और अव्यवहारिक है. इस फैसले से राज्य में अनावश्यक रूप से तनाव बढ़ेगा. इसका नतीजा पहले भी देखा जा चुका है. इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि पूरे मामले में सरकार को गंभीर रूप से मनन करने की जरूरत है. इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि 1932 गुजरे 90 वर्ष हो चुके हैं. इन 90 वर्षों में विश्व में कई बदलाव हुए हैं. उन्होंने कहा कि उस दौरान जो भूमिहीन थे, उन्हें कैसे राहत दी जाएगी. इस फैसले से भूमिहीन प्रभावी होंगे. 

ऐसे में 1932 के खतियान पर स्थानीयता सही नहीं मानी जा सकती. इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि ऐसा कहा जा रहा है कि कोल्हान और अन्य इलाकों में भी इसका विरोध शुरू हो गया है. अब देखने वाली बात होगी कि जनता इस फैसले पर अपना क्या रुख अपनाती है. कोल्हान और अन्य इलाके में 1961-62 के सर्वे को स्थानीयता का आधार मानने की बात कही जा रही है. तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 1932 के खतियान को लागू करने की कोशिश की थी. उस दौरान जो घटनाएं घटी उसका इतिहास गवाह है.

इंदर सिंह नामधारी ने राज्य के वर्तमान राजनीतिक हालात पर बोलते हुए कहा कि राजभवन की चुप्पी सोच से परे हैं. चुनाव आयोग का जो भी निर्णय है या पत्र है सीएम को बुलाकर राजभवन को बता देना चाहिए. पूरे मामले में राजभवन चुप क्यों है यह सोच से परे है. मामले में हर कोई अलग-अलग बात कह रहा है. लोकतंत्र में पारदर्शिता होनी चाहिए, जो भी फैसला था. इसे गोपनीय रखने की क्या जरूरत है.