किसी जमाने में दी जाती थी इंसान की बलि, अब मुर्गों से जुड़ी है नई परंपरा
भारत देश अपने में कई संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है. आप देश के जिस कोने में जाएंगे, आपको कुछ अनोखी परंपरा देखने को मिलेगी.
highlights
- झारखंड के बोकारो में मुर्गा उड़ान की परंपरा
- हजारों वर्षों से चली आ रही है यह परंपरा
- दूर-दूर से लोग मन्नत लेकर पहुंचते हैं गांव
Bokaro:
भारत देश अपने में कई संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है. आप देश के जिस कोने में जाएंगे, आपको कुछ अनोखी परंपरा देखने को मिलेगी. ऐसी ही एक परंपरा के बारे में आज हम बताने जा रहे हैं. पुरानी मान्यताओं की मानें तो झारखंड राज्य के बोकारो जिले के इस क्षेत्र में किसी जमाने में इंसान की बलि दी जाती थी लेकिन समय के साथ परंपरा बदल दी गई और अब उसकी जगह मुर्गा उड़ान की परंपरा है. पूरे भारतवर्ष में सिर्फ यहां मुर्गा उड़ान की परंपरा की जाती है. यह परंपरा हजारों वर्षों से चलती आ रही है. यह बात सुनने में अजीबोगरीब लगता होगा, मगर सच्चाई यही है कि यहां आज भी इंसानों के खून से देवी मां को भोग लगाया जाता है.
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देवी मां को दी जाती है मुर्गे की बलि
हम बात कर रहे हैं बोकारो के बेरमो विधानसभा क्षेत्र के घुटिया टांडा बस्ती की, जहां दामोदर नदी के किनारे अवस्थित पौराणिक और ऐतिहासिक देवी मां की मंदिर है. ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि यहां लोग मानते हैं कि यह देवी मां के मंदिर में जो परंपरा है. वह हजारों वर्षों से चली आ रही है और वह परंपरा समय के साथ बदल कर नरबलि से अब मुर्गा उड़ान में बदल दी गई है. जहां इस मुर्गा उड़ान के दौरान छीना झपटी में इंसान को चोट या खरोच लगने से उसका खून जमीन पर गिरता है और यह देवी मां के भोग के लिए अपने आप समर्पित हो जाती है.
हजारों वर्ष पुरानी है यह परंपरा
स्थानीय लोगों की मानें तो हजारों वर्ष पूर्व इस जगह पर मकर संक्रांति के दिन अपने आप एक कन्या प्रकट हुई थी. कन्या को लोगों ने नदी में स्नान कराया और फिर उसे सजा-धजाकर उसका सिंगार कर मंदिर में छोड़ दिया. अगले ही दिन कन्या धर्म स्थल से गायब हो गई, उस स्थान पर खून के छींटे देखे गए. जिसके बाद वहां के लोगों ने इस परंपरा को बनाया और आज भी स्थानीय लोगों ने इस परंपरा को जारी रखा है.
एक मात्र स्थान जहां दी जाती है मुर्गे की बलि
लोग इसे अपनी आस्था से जोड़कर आज भी इस जगह दूर-दूर से लोग हजारों की संख्या में जुटते हैं और देवी मां को नए चावल के पकवान चढ़ाकर पूजा प्रारंभ की जाती है. मन्नत पूरी होने वाले लोग या श्रद्धालु लाल मुर्गा लेकर देवी मां के मंदिर पहुंचते हैं और उसके बाद उस लाल मुर्गे को हजारों ग्रामीणों व श्रद्धालुओं के बीच छोड़ दिया जाता है. जिसे पूरी की पूरी भीड़ उस मुर्गे को लूटने के लिए छीना झपटी करते हैं. यहां के लोग मानते हैं कि यह परंपरा पूरे भारतवर्ष में सिर्फ और सिर्फ यहीं है.
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