गुमला की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे, खड़े हुए सवाल

गुमला जिला की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से भगवान भरोसे है. जिला में चिकित्सकों के साथ ही अन्य स्टाफ की कमी को लेकर आए दिन हंगामा होता है, लेकिन उसको लेकर सरकार भी गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है.

गुमला जिला की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से भगवान भरोसे है. जिला में चिकित्सकों के साथ ही अन्य स्टाफ की कमी को लेकर आए दिन हंगामा होता है, लेकिन उसको लेकर सरकार भी गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है.

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Vineeta Kumari
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गुमला की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

गुमला जिला की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से भगवान भरोसे है. जिला में चिकित्सकों के साथ ही अन्य स्टाफ की कमी को लेकर आए दिन हंगामा होता है, लेकिन उसको लेकर सरकार भी गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है. हालांकि जिले के डीसी मामले को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं. गुमला जिला झारखंड का एक ऐसा आदिवासी बहुल जिला है, जहां की 80 प्रतिशत आबादी पूरी तरह से सदर हॉस्पिटल पर आश्रित है. जिला में कोई दूसरा विकल्प भी लोगों के पास नहीं है. इसके बावजूद आदिवासी का हितैषी बताने वाली सरकार को इसकी चिंता नहीं है.

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डॉक्टरों की कमी के साथ ही यहां सही रूप से जांच की व्यवस्था भी नहीं है. हॉस्पिटल के कर्मी भी मानते हैं कि संसाधन बेहतर हो जाये तो लोगों को दिक्कत नहीं होगी. गुमला सदर हॉस्पिटल का भवन का प्रस्ताव 300 बेड का था, लेकिन अभी तक केवल 100 बेड की ही व्यवस्था है. जिससे काफी दिक्कत होती है. स्थानीय लोगों ने इसको लेकर सवाल भी खड़ा किया है.

गुमला जिला कोई नया जिला नहीं है, यह जिला 1983 में बना है लेकिन आज तक यहां स्वास्थ्य की सही व्यवस्था ना होना चिंता का विषय है. इसको लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि भी गंभीर नहीं है. जिला के सदर हॉस्पिटल को लेकर केवल लंबे-चौड़े दावे होते हैं, काम नहीं होता है. डीसी सुशांत गौरव भी मानते हैं कि हॉस्पिटल को बेहतर होना चाहिए. उन्होंने कहा कि उनका प्रयास है कि इसे काफी बेहतर बनाया जाए ताकि यहां के लोगों को दिक्कत ना हो.

जिला के सदर हॉस्पिटल को अगर तीन जिलों का सेंटर प्वाइंट बनाकर भी विकसित किया जाए तो इससे गुमला के साथ ही लोहरदगा और सिमडेगा के लोगों को भी लाभ मिलेगा. जिससे रिम्स पर पड़ने वाले भार में कमी आएगी. बस सरकार को इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में आज भी आदिवासी गरीबों की जान जा रही है, जो चिंता का विषय है.

Source : News Nation Bureau

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