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झारखंड के बच्चों की अवाज, क्लास में पढ़ते हैं तो डर लगता है

21वीं सदी में एक तरफ जहां देश विकास की नई गाथाएं लिख रहा है, तो वहीं दूसरी ओर आज भी ग्रामीण इलाकों से 70 के दशक की तस्वीरें देखने को मिल जाती है.

Updated on: 04 Oct 2022, 04:46 PM

Pakur:

21वीं सदी में एक तरफ जहां देश विकास की नई गाथाएं लिख रहा है, तो वहीं दूसरी ओर आज भी ग्रामीण इलाकों से 70 के दशक की तस्वीरें देखने को मिल जाती है. पाकुड़ जिले में बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. टीचर भी पेड़ के नीचे कुर्सी लगाकर बच्चों को शिक्षा देते हैं. इनके पास इसके अलावा और कोई दूसरा चारा भी नहीं है. एक स्कूल भवन है, जिसकी हालत इतनी जर्जर है कि कब हादसा हो जाए कह नहीं सकते. जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को ना तो छात्रों की सुरक्षा की फ्रिक है और ही उनके भविष्य की. 

पाकुड़ जिले के सदर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय आसनढीपा की हालत जर्जर हो चुकी है. स्कूल भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है. इस स्कूल की स्थापना 1947  में की गई थी. तब से लेकर अब तक इस स्कूल का पुनर्निर्माण नहीं कराया गया. स्कूल की बिल्डिंग काफी पुरानी और जर्जर है. सभी कमरों की छतों में दरारें पड़ गई हैं. छत से प्लास्टर गिरता रहता है. बारिश होने पर कमरों में पानी टपकने लगता है. ऐसे में भवन में बच्चों को बैठाने का मतलब हादसे को दावत देना है. लिहाजा टीचर्स बच्चों को स्कूल के बाहर पेड़ के नीचे पढ़ाते हैं. कई बच्चों का कहना है कि जब हम क्लास में पढ़ाई करते हैं तो हमे डर लगता है.

अभिभावक बच्चों को स्कूल भेज तो देते हैं, लेकिन उन्हें हमेशा हादसे का डर सताता रहता है. बारिश होने पर बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है. स्कूल के प्रिंसिपल ने जर्जर इमारत की खबर अधिकारियों को भी दी. प्रिंसिपल ने शिक्षा विभाग को शिकायती पत्र भी लिखा, लेकिन विभाग की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है. ऐसे में मजबूर होकर प्रिंसिपल ने बच्चों को स्कूल परिसर में लगे पेड़ के नीचे पढ़ाने का फैसला लिया.

सरकार की ओर से शिक्षा और बच्चों के उज्जवल भविष्य को लेकर तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है... ये तस्वीरें बयां करती है. शिक्षा विभाग की लापरवाही इस कदर है कि शिकायत के बाद भी अधिकारियों ने कोई सुनवाई करना ठीक नहीं समझा. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इसी तरह बच्चों की शिक्षा से खिलवाड़ होता रहेगा तो क्या हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना कर सकते हैं. अगर बच्चों को पढ़ाई के लिए मूलभूत सुविधा ना मिले तो सरकारी दावे और वादे किस काम के?

रिपोर्ट : तपेश कुमार मंडल