दीपावली की अगली सुबह पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है, झारखंड में ये त्योहार

बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के गांव कस्बे में आज भी सूप, टोकरी व बांस के पंखे जलाने का रस्म है. जो पूर्वजों से चलता आ रहा है. कहां जाता है कि ऐसा करने से घर के दुख, दरिद्रता भागती है. जिससे घर में सुख शांति की समृद्धि और देव का वास होता है.

बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के गांव कस्बे में आज भी सूप, टोकरी व बांस के पंखे जलाने का रस्म है. जो पूर्वजों से चलता आ रहा है. कहां जाता है कि ऐसा करने से घर के दुख, दरिद्रता भागती है. जिससे घर में सुख शांति की समृद्धि और देव का वास होता है.

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Rashmi Rani
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सुप एवं टोकरी बजाते लोग ( Photo Credit : NewsState BiharJharkhand)

दीपवाली का त्योहार कल पुरे धूम धाम के साथ देश में मनाया गया. आज इस आधुनिक युग में पारंपरिक दिवाली कही खो गई है. लेकिन शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई त्योहार विधि विधान एवं पारंपरिक तरीके से मनाते आ रहे हैं. प्रकाश का त्योहार दीपावली की अगली सुबह झारखंड, बिहार , बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के गांव कस्बे में आज भी सूप, टोकरी व बांस के पंखे जलाने का रस्म है. जो पूर्वजों से चलता आ रहा है. कहां जाता है कि ऐसा करने से घर के दुख, दरिद्रता भागती है. जिससे घर में सुख शांति की समृद्धि और देव का वास होता है. 

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हजारीबाग जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्र जैसे ईचाक, कटकमसांडी टाटीझरिया , पदमा व बरही के गांव-गांव में दीपावली की अगली सुबह अपने अपने घरों के कोने से सुप, टोकरी व बांस के पंखे को बजा कर घर के बच्चे, युवा व महिलाएं गांव के एक कोने और चौक चौराहे पर सूप टोकरी को जलाती नजर आई. ग्रामीणों ने बताया कि यह प्रचलन पूर्वजों से चलता आ रहा है. उनका कहना है कि दीपावली की अगली सुबह घर के कोने से सुप एवं टोकरी को बजा कर एक टोली के रूप में गांव के चौक चौराहे में इसे जलाया जाता है.

आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली की अगली सुबह सूप टोकरी, बांस का पंखा को पीटते हुए दरिद्र खेदेरना या दरिद्र भगाने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है. जिसे आज भी ग्रामीण क्षेत्र में लोग बड़े विधि विधान के साथ करते नजर आते हैं.  

Source : News State Bihar Jharkhand

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