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बाबूलाल मरांडी की झाविमो ने हेमंत सरकार से समर्थन वापस लिया

झाविमो ने गुरुवार को दिल्ली में प्रदीप यादव और बंधू तिर्की के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात का संज्ञान लिया.

Updated on: 25 Jan 2020, 07:14 AM

रांची:

बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) के झारखंड विकास मोर्चा ने झारखंड की हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के नेतृत्व वाली गठबंधन की सरकार से आज यह आरोप लगाते हुए समर्थन वापस ले लिया कि गठबंधन में शामिल कांग्रेस (Congress) उसके विधायकों को खुलेआम तोड़ने की कोशिश कर रही है. झामिवो के केन्द्रीय महासचिव सरोज सिंह ने आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि झाविमो (JVM) ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार से तत्काल प्रभाव से अपना समर्थन वापस ले लिया है.

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झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी प्रमुख बाबूलाल मरांडी समेत झारखंड विकास मोर्चा के तीन विधायक निर्वाचित हुए थे, जिनमें से मांडर के विधायक बंधू तिर्की को पार्टी ने दो दिनों पूर्व पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया था. विधानसभा में अब झाविमो के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी समेत दो विधायक शेष हैं. झाविमो ने गुरुवार को दिल्ली में पार्टी के विधायक दल के नेता प्रदीप यादव और निष्कासित विधायक बंधू तिर्की के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात का संज्ञान लिया और फिर सरकार से समर्थन वापसी का फैसला किया. इसके अलावा झाविमो ने पार्टी के विधायक दल के नेता प्रदीप यादव को विधायक दल के नेता पद से भी पदच्युत कर दिया है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आज लिखे अपने पत्र में बाबूलाल मरांडी ने कहा कि हमारी झाविमो ने 24 दिसंबर को आपके नेतृत्व में संप्रग गठबंधन सरकार को बिना शर्त समर्थन देने के लिए पत्र लिखा था. मरांडी ने आगे लिखा है कि संप्रग गठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी ही हमारी पार्टी के विधायकों को तोड़कर अपने दल में शामिल कराने के लिए प्रयासरत हैं. इस प्रकार का समाचार मीडिया में आया है. मरांडी ने कहा है कि इस परिस्थिति में हमारी पार्टी समर्थन के मुद्दे पर पुनर्विचार करते हुए आपके नेतृत्व में चल रही संप्रग गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेती है.

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गौरतलब है कि नवंबर-दिसंबर 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनावों में 81 सदस्यीय विधानसभा में झाविमो के तीन विधायक चुनाव जीत कर आए थे, जबकि सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा को 30, उसकी सहयोगी कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट मिली थी. अतः बहुमत के लिए आवश्यक 41 विधायकों से अधिक 47 विधायकों का समर्थन सरकार के पास है, जिसके चलते झाविमो के निर्णय के कारण राज्य सरकार की स्थिरता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.