कश्मीर में एक सप्ताह पहले निरपराध हिंदू और सिख समुदाय के लोगों की हत्या की गयी. इसके बाद तीन दशक पहले की घटनाएं एक बार फिर ताजा हो गयी हैं. जब घाटी छोड़कर हजारों हिंदू परिवारों को दूसरे शहरों में शरण लेनी पड़ी थी. कश्मीर में आतंकवादियों का खूनी खेल भारत सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. दिल्ली और श्रीनगर में सरकारें बनती बिगड़ती रहती है लेकिन आतंकवादियों के हौसले बुलंद रहते हैं. वे जब चाहते हैं तब निर्दोष नागरिकों को मौत की नीद सुला फरार हो जाते हैं. कश्मीर में हिंसा और आतंकवाद भारत सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. अभी तक इस समस्या का कोई कारगर समाधान नहीं दिख रहा है. चीन और इजराइल भी इस्लामी अतंकवाद से ग्रस्त हैं. इजराइल फिलिस्तीनी आतंकवादियों तो चीन उइगरों से परेशान है. चीनऔर इजराइल ने आतंकवादियों से निपटने का तरीका भी खोजा है. ऐसे में इस समय चीनी फॉर्मूले की चर्चा लाजिमी है.
चीन भी अपने एक प्रांत में कश्मीर जैसी ही समस्या का सामना कर रहा था. इसके लिए उसने बेहद कड़े कदम उठाए. हालांकि उसके इस फॉर्मूले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब आलोचना भी हुई. लेकिन इस फॉर्मूले से भारत पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक कुछ सीख सकता है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर चीन का वो फॉर्मूला क्या था और कश्मीर के मामले में वो कितना कारगर है?
चीन में भी कश्मीर जैसी समस्या है. चीन का प्रांत शिनजियांग उइगर मुस्लिम बहुल इलाका है. लेकिन भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत की तरह वहां भी अलगाववाद की समस्या थी. वहां भी हिंसा की कई घटनाएं घटीं. इसके बाद चीन ने बेहद कड़ा रुख अपनाया और स्थिति पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर लिया. हालांकि, इस काम में उस पर मानवाधिकार के उल्लंघन के कई आरोप लगे, लेकिन चीन की ताकत के सामने पूरी दुनिया ने एक तरह से चुप्पी साध ली.
शिनजियांग में हिंसा और चीन विरोधी भावनाओं के उग्र होने के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने वर्ष 2014 से बेहद कड़ी रणनीति अपनाई. इसके तहत चीन ने कई स्तरों पर काम किया. सबसे पहले उसने इलाके में उच्च तकनीक आधारित निगरानी व्यवस्था को बेहद कड़ा कर दिया. इसके बाद वहां के अल्पसंख्यक उइगर मुस्लिमों की पुनर्शिक्षा और राजनीतिक सोच ठीक करने के लिए उन्हें बंदी शिविरों में रखा गया. बंदी शिविरों में रखे गए ऐसे लोगों की संख्या करीब 15 लाख बताई जाती है. उइगर मुस्लिमों में अलगाववाद की प्रवृत्ति खत्म करने के लिए चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग की खूब प्रशंसा हुई. हालांकि पश्चिमी देशों ने जिनपिंग के इस कदम को नरसंहार करार दिया.
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जिस तरह से भारत के लिए जम्मू-कश्मीर का भौगोलिक महत्व है ठीक उसी तरह चीन के लिए शिनजियांग है. इस क्षेत्र से चीन का मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और यूरोप के बाजारों तक सीधा संपर्क स्थापित होता है. यह क्षेत्र चीन के चर्चित बेल्ट एंड रोड इनेशिएटिव का दिल कहा जाता है. इतना ही नहीं विवादित चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर की शुरुआत भी इसी क्षेत्र से होती है.
कश्मीर की तरह चीन का यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाका रहा है. जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी में करीब 68 फीसदी मुस्लिम और 28 फीसदी हिंदू हैं. यह दो संभागों जम्मू और कश्मीर में बंटा हुआ है. कश्मीर पूरी तरह मुस्लिम बहुल इलाका है तो जम्मू में हिंदू आबादी बहुमत में हैं.
चीन ने रणनीति के तहत शिनजियांग की जनसांख्यिकी बदलने की कोशिश की. रिपोर्ट के मुताबिक 1945 में शिनजियांग में चीन के मूल निवासी जिन्हें हान कहा जाता है उनकी हिस्सेदारी केवल छह फीसदी थी. लेकिन, 2010 में वहीं कुल आबादी में हान की भागीदारी 40 फीसदी तक पहुंच गई थी. दरअसल, चीन ने इस इलाके की समस्या को काफी पहले समझ लिया था और उसने इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वहां की जनसांख्यिकी को बदलने की जरूरत को काफी पहले समझ लिया था.
शिनजियांग में चीन के इन कदमों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमनकारी करार दिया गया. चीन ने इस इलाके में 1200 से ज्याद कैंप बनवाए जिन्हें रि-एजुकेशन कैंप्स नाम दिया गया. इन शिविरों में 15 लाख से अधिक उइगर मुस्लिमों को रखा गया. एक लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर उन मुस्लिम पुरुषों को रखा गया जो लंबी दाढ़ी रखते थे. यहां बुर्का पहनने वाली महिलाओं को भी रखा गया. उन्हें चीन के प्रति वफादारी के पाठ पढ़ाए गए. उन्हें मंदारिन सिखाई गई. उन्हें इस्लामिक संस्कृति की निंदा करने के लिए मजबूर किया गया.
HIGHLIGHTS
- इजराइल फिलिस्तीनी आतंकवादियों तो चीन उइगरों से परेशान है
- चीन और इजराइल ने आतंकवादियों से निपटने का तरीका भी खोजा है
- चीन का वो फॉर्मूला क्या था और कश्मीर के मामले में वो कितना कारगर है