जम्मू-कश्मीर: पहले झील के पास बीनता था कूड़ा, अब बना डल झील और अन्य जलाशयों का ब्रांड एंबेसेडर

बिलाल अहमद डार (18) अपनी दिनचर्या के अनुसार दिसंबर की एक कंपकपाती सुबह वुलर झील जाने को तैयार है, जोकि एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।

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Vineeta Mandal
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जम्मू-कश्मीर: पहले झील के पास बीनता था कूड़ा, अब बना डल झील और अन्य जलाशयों का ब्रांड एंबेसेडर

फोटो : IANS

बिलाल अहमद डार (18) अपनी दिनचर्या के अनुसार दिसंबर की एक कंपकपाती सुबह वुलर झील जाने को तैयार है, जोकि एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।

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परिवार का कमाऊ पूत पिछले चार साल से वहां झील देखने आने वाले सैलानियों व स्थानीय लोगों द्वारा इस्तेमाल कर फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलें, धातु की रद्दी चीजें, खाली टेट्रापैक डिब्बे व अन्य चीजें इकट्ठा करता रहा है। अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तरह वह स्कूल नहीं जाता, बल्कि कूड़ा-करकट बीनता है।

पांच साल पहले उसके पिता मुहम्मद रमजान जब मां मुगली, बड़ी बहन कुलसुमा, छोटी बहन रकसाना और बिलाल को छोड़ इस दुनिया से चल बसे थे तभी बिलाल ने स्कूल जाना छोड़ दिया था। किस्मत ने बिलाल को वुलर झील से कूड़ा इकट्ठा कर उसे कबाड़ियों को बेचने को मजबूर कर दिया।

इस प्रक्रम में यह किशोर वह काम कर रहा है जिसे करने में सरकार विफल रही है और वह है समुदाय की जीवन रेखा रही वुलर झील की सफाई, जिसके प्रति बचपन से उसके भीतर एक जुनून रहा है।

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बिलाल ने कहा, 'वुलर हमारी जिंदगी है। मुझे हमेशा दुख होता है जब हम यहां आने वाले सैलानियों को कूड़ा-करकट फैलाते देखते हैं। जब मेरे पिताजी जीवित थे उस समय भी मैं झील के किनारे जाया करता था और वहां बिखरे हानिकारक चीजें बटोरकर हटा दिया करता था। जब मेरे पिता चल बसे तो मेरे पास अपनी पढ़ाई छोड़कर पढ़ाई छोड़कर अपने व अपने परिवार के गुजारे के लिए कमाने के सिवा कोई चारा नहीं था।'

बिलाल ने कहा, 'मैंने अपनी शगल को कमाई का जरिया बनाने का फैसला लिया क्योंकि मैं झील के तट पर पैदा हुआ था और यहीं पला बढ़ा हूं।'

बिलाल की इस छोटी सी व अज्ञात कोशिश की तरफ अगर किसी की नजर गई तो वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने अपने कार्यक्रम 'मन की बात' में खासतौर से बिलाल के परिश्रम की तारीफ की है।

बिलाल ने कहा, 'जब तक अधिकारी और पत्रकार हमारे गांव में नहीं पहुंचे मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था। यह मेरे लिए वास्तव में उत्साहवर्धक है कि प्रधानमंत्री ने मेरे काम का जिक्र किया।'

उसने कहा, 'इससे हमारी जिंदगी में भारी बदलाव आया है। मैं रोजाना झील से कूड़ा करकट इकट्ठा कर उसे बेचकर 100 रुपये प्रतिदिन कमाता था लेकिन यह अच्छे मौसम व अन्य कारकों पर निर्भर करता था।'

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मोदी द्वारा बिलाल का जिक्र करने से प्रेरित होकर श्रीनगर नगर निगम ने श्रीनगर में डल झील और अन्य जलाशयों की बिगड़ती दशाओं की तरफ लोगों का ध्यान केन्द्रित करने के लिए बिलाल को इसका ब्रांड एंबेसेडर बना दिया। नगरपालिका की ओर से बिलाल के लिए आठ हजार रुपये मासिक मानदेय तय किया गया है।

बिलाल ने कहा, 'मेरी पहली तनख्वाह पिछले महीने मेरे खाते में आ चुकी है। अब मेरा जीवन स्तर बेहतर होने वाला है और मैं अब अपना काम भी ज्यादा प्रभावी ढंग से कर सकता हूं। अन्य लड़के और वयस्क लोग भी झील की सफाई को लेकर अपनी तरफ से कुछ करने को उत्साहित दिखने लगे हैं।'

झील के आसपास बसे लोगों और यहां आने वाले सैलानियों से मेरी एक ही गुजारिश है कि वो यहां झील में या इसके तटों पर गंदगी न फैलाएं।

हर किसी को जलाशयों को दूषित नहीं करने का संकल्प लेने के बाद जलाशयों में पहले से मौजूद गंदगी को दूर करना चाहिए। उसका कहना है कि जलाशय से सारी गंदगी साफ करना किसी एक आदमी के बस की बात नहीं है।

बिलाल ने कहा, 'इन दिनों झील में मृत जानवरों के कंकाल भी तैरते दिखाई देते हैं। मेरी मां कहती है कि कभी इसी झील का पानी लोग पीते थे और उन्हें बीमार पड़ने का कोई डर नहीं होता था।'

बिलाल के श्रम के लिए उसे पहचान मिलने से उसके जीवन में तो बदलाव आया ही है, उससे भी बढ़कर उसे इस बात का भरोसा हो गया है कि उसके इस प्रयास से एक दिन उस झील के पर्यावरण और पारिस्थितिकी में बदलाव आएगा जिसके किनारे उसका जन्म हुआ था।

झील की अपनी दैनिक यात्रा शुरू करने से पहले बिलाल ने सवालिया लहजे में कहा, 'मुझे अब विश्वास हो गया कि बड़ा-छोटा हर कोई वुलर झील की खोयी विरासत को बचाने की दिशा में अपना योगदान करेगा। हम सब मिलकर कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि हम अपने आसपास के जलाशयों को दूषित करना बंद कर दें। अगर हमारी नदियां और झीलें ही नहीं होंगी तो फिर कश्मीर कैसे बचेगा?'

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Source : IANS

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