New Update
/newsnation/media/media_files/2025/07/14/jammu-kashmir-cm-2025-07-14-16-58-54.jpg)
jammu kashmir cm Photograph: (social media)
0
By clicking the button, I accept the Terms of Use of the service and its Privacy Policy, as well as consent to the processing of personal data.
Don’t have an account? Signup
जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उन्हें एक दिन पहले ही नजरबंद किया गया था. सीएम ने मजार-ए-शुहादा (शहीद स्मारक) की चारदीवारी फांदकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी.
jammu kashmir cm Photograph: (social media)
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री अमर अब्दुल्ला सोमवार को सुरक्षा बैरिकेड्स को तोड़कर मजार-ए-शुहादा (शहीद स्मारक) की चारदीवारी फांदकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी. ये 1931 में डोगरा शासन के विरोध में मारे गए कश्मीरी थे. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सुरक्षा बलों ने उन्हें श्रीनगर के पुराने शहर में मौजूद स्मारक तक पहुंचने से रोका. जम्मू-कश्मीर में रविवार, 13 जुलाई को शहीद दिवस मनाया गया. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह सोमवार को बिना किसी को बताए वहां पर पहुंच गए. रविवार को उन्हें यहां पर जाने की इजाजत नहीं थी.
अब्दुल्ला ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है. हमें कल यहां फ़ातिहा पढ़ने की अनुमति नहीं दी. लोगों को उनके घरों तक ही सीमित किया गया. इसके बाद जब दरवाजे खोले गए तो मैंने कंट्रोल रूम को जानकारी दी कि मैं यहां आना चाहता हूं. इसके बाद मेरे दरवाजे के सामने एक बंकर तैयार कर दिया गया. देर रात तक उसे हटाया नहीं गया. अब्दुल्ला ने कहा कि आज यानि सोमवार को उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया. बिना बताए मैं कार में बैठ गया और यहां चला आया."
#WATCH | Srinagar | J&K CM Omar Abdullah jumped over the boundary wall of Mazar-e-Shuhada to recite prayers after he was allegedly stopped by the security forces
— ANI (@ANI) July 14, 2025
Omar Abdullah said that he did not inform anyone before coming to the Mazar-e-Shuhada, as he was house arrested… https://t.co/gQTTepddvA pic.twitter.com/ou2LcFnIbr
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता के अनुसार, 'सुरक्षाबलों ने आज भी उन्हें स्मारक तक पहुंचने से रोकने की कोशिश की और पूछा किस कानून के तहत ऐसा किया गया. सीएम ने कहा, आज भी उन्होंने हमें रोकने का प्रयास किया. हमने नौहट्टा चौक पर गाड़ी खड़ी की. उन्होंने हमारे सामने बंकर तैयार किए. हमारे साथ बदसलूकी की गई. वर्दीधारी ये पुलिसवाले कभी-कभी कानून को भूल जाते हैं. मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं कि आज उन्होंने किस कानून के तहत हमें रोकने का प्रयास किया? ये पाबंदियां तो कल की बात है. अब तो ये आज़ाद देश है, लेकिन कभी-कभी उन्हें लगता है कि हम उनके गुलाम हैं. वे किसी के गुलाम नहीं हैं. अगर हम गुलाम हैं, तो हम जनता के गुलाम हैं.'
13 जुलाई, 1931 को श्रीनगर जेल के बाहर तत्कालीन महाराजा हरि सिंह डोगरा की सेना ने कश्मीरी प्रदर्शनकारियों के एक समूह पर गोलियां बरसाईं थीं. प्रदर्शनकारियों ने अब्दुल कादिर का समर्थन किया था. उन्होंने कश्मीरियों से डोगरा शासक के खिलाफ आवाज़ उठाने का आह्वान किया था. इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया था और उन पर राजद्रोह का आरोप मढ़ा. उस दौरान हुई गोलीबारी में 22 प्रदर्शनकारी की मौत हो गई थी. बीते 70 सालों से 13 जुलाई को कश्मीर में एक ऐतिहासिक दिन के रूप में मनाया जाता है.