युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है. किसी युद्ध से यदि किसी समस्या का हल होता दिखता है तो कई समस्याएं सामने खड़ी भी हो जाती हैं. कश्मीर लंबे समय से आतंकवाद की चपेट में है. आतंकी अपने इरादे को पूरा करने के लिए मासूम नागरिकों को गोली का शिकार बना रहे हैं. ऐसी ही एक घटना जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के खांदली इलाके में हुई. जहां पर आतंकियों ने भाजपा नेता जसबीर सिंह के घर पर ग्रेनेड से हमला किया. हमले में 4 लोग घायल हुए और जसबीर सिंह के साढ़े तीन साल के भतीजे (वीर सिंह) की मौत हो गयी.
घटना के बाद बच्चे की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. यूजर्स आतंकवादियों के मानवाधिकार की पैरवी करने वालों पर निशाना बनाते हुए सवाल कर रहे हैं कि क्या आम इंसानों का भी कोई मानवाधिकार होता है?
राजौरी में ग्रेनेड हमले में मृत बच्चे की तस्वीर की तुलना इस सदी के कुछ चर्चित तस्वीरों से की जाने लगी है. ऐसे दृश्य हमारे जेहन में बहुत लंबे समय तक अंकित रहते हैं.
भोपाल की गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है. तीन दिसंबर, 1984 को आधी रात के बाद सुबह यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस (मिक या मिथाइल आइसो साइनाइट) ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. मरने वालों की संख्या हजारों में थी लेकिन एक तस्वीर ने सबको हिला दिया था. यह तस्वीर एक बच्चे की है. मृत बच्चे की पिता उसको दफना रहे हैं सारे शरीर पर मिट्टी डाली जा चुकी है,,अभी सिर दिख रहा है.
कुछ वर्ष पहले ऐसी ही एक तस्वीर विश्व मीडिया में चर्चित हुई थी. यह तस्वीर सीरिया के कुर्दी मूल के तीन वर्षीय बच्चे एलन कुर्दी की थी. जिसका शव समुद्र के किनारे पड़ा था. कुर्दी का परिवार सीरियाई गृहयुद्ध से बचने के लिए 2 सितंबर 2015 को एक नौका में तुर्की से ग्रीस जाने की कोशिश कर रहा था, पर नौका के डूबने से कुर्दी की मौत हो गई थी.
शरबत गुला की तस्वीर को नेशनल ज्योग्राफिक ने जून 1985 में कवर पर प्रकाशित किया तो उस तस्वीर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली. अफगान मूल की 12 वर्षीय शरबत गुल की वो तस्वीर स्टीव मैक्करी ने खींची थी. हरी आंखों वाली अफगान लड़की 1984 में अफ़ग़ान युद्ध के दौरान अपने परिवार के साथ पाकिस्तान आई थीं और शरणार्थियों के बनाए शिविर में ही रुक गई थीं. अपनी हरी आंखों के कारण मशहूर हुई शरबत गुला पर वर्ष 2002 में नेशनल ज्योग्राफिक चैनल ने डॉक्यूमेंट्री बनाई थी जिसके बाद वे 'अफ़ग़ान युद्ध की मोनालिसा' के नाम से मशहूर हो गई थीं.
1993 में एक भूखी सूडानी बच्ची के मरने का इंतजार कर रहे गिद्ध की यह तस्वीर फोटो पत्रकार केविन कार्टर ने ली थी, जिसके लिए बाद में उन्हें पुलित्जर पुरस्कार मिला. लेकिन वे अपनी इस उपलब्धि का आनंद लेने के लिए कुछ महीने ही जीवित रहे क्योंकि आलोचना के बाद वे अवसाद में चले गए और 33 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली थी.
Source : News Nation Bureau