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जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार का बड़ा फैसला, 160 दिन बाद 26 लोगों से हटाया PSA

जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने 160 दिन बाद विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जनसुरक्षा कानून (PSA) हटा दिया है.

Updated on: 11 Jan 2020, 06:07 PM

श्रीनगर:

जम्मू कश्मीर के गृह विभाग ने 160 दिन बाद विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जनसुरक्षा कानून (PSA) हटा दिया है. अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. इसे क्षेत्र में स्थिति को आसान करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के पांच अगस्त के केंद्र के फैसले के बाद इन लोगों को पकड़ा गया था और इनके खिलाफ पीएसए लगाया गया था.

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जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कश्मीर घाटी में इंटरनेट पर रोक और धारा 144 पर रोक के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश के चंद घंटे बाद कश्मीर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सहित 26 लोगों पर लगा कड़ा जनसुरक्षा कानून (पीएसए) हटा लिया. इन 26 लोगों में से 11 लोग उत्तरी कश्मीर से और 14 लोग दक्षिणी कश्मीर से हैं. वहीं, कश्मीर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष नजीर अहमद रोंगा भी इन लोगों में शामिल हैं.

सूत्रों ने बताया कि इन लोगों को शनिवार को रिहा किए जाने की संभावना है. इनमें से कुछ केंद्रशासित प्रदेश से बाहर उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बंद हैं. जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने हाल में कुछ लोगों से पीएसए हटा दिया था और आदेश पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारियों पर तीखी टिप्पणी की थी. तीन बार मुख्यमंत्री रहे एवं वर्तमान में लोकसभा सदस्य फारूक अब्दुल्ला पर भी 17 सितंबर को पीएसए लगा दिया गया था.

इसके बाद एमडीएमके नेता वाइको ने उच्चतम न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर उनकी पेशी की मांग की थी. उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित दर्जनों अन्य नेताओं को एहतियातन हिरासत में रखा गया है. इससे पहले आज उच्चतम न्यायालय ने अपनी एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में इंटरनेट के इस्तेमाल को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार करार दिया और जम्मू कश्मीर प्रशासन से कहा कि केन्द्रशासित प्रदेश में सभी प्रतिबंधों की एक सप्ताह के भीतर समीक्षा की जाए.

बता दें कि मोदी सरकार ने पिछले साल 5 अगस्‍त को जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 को निष्‍प्रभावी कर दिया था. इसके साथ ही सरकार ने एहतियातन राज्‍य में तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. इसमें इंटरनेट और धारा 144 को लागू करना भी शामिल था. कई संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू भी लगाई गई थी. स्‍कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए थे. तमाम व्‍यापारिक गतिविधियां प्रभावित हो रही थीं. स्‍कूल कॉलेज तो खुल गए. कर्फ्यू और धारा 144 भी हटा दी गई. पिछले दिनों सरकार की ओर से बयान दिया गया था कि अब जम्‍मू-कश्‍मीर में किश्‍तवाड़ को छोड़कर कहीं भी धारा 144 लागू नहीं है.

जम्‍मू-कश्‍मीर में इन पाबंदियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. नवंबर के अंतिम सप्‍ताह में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा, जब तक जरूरी न हो न तो इंटरनेट पर बैन लगाया जाना चाहिए और न ही धारा 144 लगाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, इंटरनेट के बेजा इस्तेमाल और सूचनाएं फैलाने के इंटरनेट के रोल के बीच के फर्क को हमें समझना होगा. हमारा दायित्‍व है कि नागरिकों को सभी सुरक्षा और अधिकार मिले. सुप्रीम कोर्ट ने जम्‍मू-कश्‍मीर में लगी पाबंदियों की अगले 7 दिनों में समीक्षा करने का आदेश भी दिया. फैसला पढ़ने के दौरान कोर्ट ने कहा, हमारा काम था जम्‍मू-कश्‍मीर में आजादी और सुरक्षा चिंताओ के बीच संतुलन कायम करना. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा, हम कश्‍मीर की राजनीति में हस्‍तक्षेप नहीं करेंगे.

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि इंटरनेट के जरिये सूचनाओं का आदान-प्रदान आर्टिकल 19(1)(A) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है. इंटरनेट पर बैन लगाने के वाजिब कारण होने चाहिए और इसे अनंतकाल तक लागू नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने धारा 144 को लेकर कहा, इसे विचारों की विविधता को दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, सरकार द्वारा प्रतिबंध से जुड़े आदेश कोर्ट में पेश करने से इंकार करना सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जम्‍मू-कश्‍मीर में ई-बैंकिंग और व्‍यापारिक सेवाएं बहाल करने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने सरकार से एक हफ्ते के अंदर पाबंदियों के सभी आदेशों की समीक्षा करने को कहा है. कोर्ट ने यह भी कहा, पाबंदियों से जुड़े सभी आदेशों को सार्वजनिक किया जाए ताकि उन्हें कोर्ट में चुनौती दी जा सके.