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Kashmir Photograph: (News Nation)
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को लेकर तैयारियाँ अपने चरम पर हैं. राज्य के सबसे बड़े उत्सव की गूंज आज कश्मीर तक सुनाई दे रही है. पुणे से भगवान गणेश की कई सुंदर प्रतिमाएं कश्मीर की घाटीयों तक पहुँच गई हैं और कश्मीर में भी गणपति बप्पा के भक्त उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ बप्पा के आगमन की तैयारी में जुट गए हैं जो श्रद्धा और उत्साह आज पूरे महाराष्ट्र में दिखाई दे रही है.
श्रीनगर, अनंतनाग और कुलगाम में मनाया जाएगा गणेशोत्सव
आर्टिकल 370 हटने के बाद से ही कश्मीर की घाटियों में भी बप्पा के भक्तों को इंतज़ार था कि यहाँ देश के अन्य राज्यों की तरह ही गणेशोत्सव मनाया जाए, जिसके बाद दक्षिण कश्मीर वेसू वेलफेयर कमेटी ने बप्पा को पुणे से कश्मीर तक ले जाने का जिम्मा उठाया और इस बार ये तीसरा साल है. जब घाटी के अलग अलग इलाके गणपति बप्पा के उत्सव से रोशन होने वाली है 27 अगस्त से श्रीनगर, अनंतनाग और कुलगाम में श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृति कार्यक्रमों के साथ पाँच दिवसीय गणेशउत्सव मनाया जाएगा.
पुणे से कश्मीर तक पहुँचे गणपति बप्पा
महाराष्ट्र के पुणे को सार्वजनिक गणेशोत्सव की जन्मभूमि माना जाता है. पिछले 2 वर्षों की तरह इस बार भी भगवान गणेश की विशेष प्रतिमाओं की प्रतिकृतियाँ कश्मीर भेजी गई हैं. शनिवार को श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति मंडल द्वारा ढोल-ताशों की गूँज और “गणपति बप्पा मोरया” के नारों के साथ इन प्रतिमाओं का पारंपरिक विधि से स्वागत किया गया और उन्हें कश्मीरी प्रतिनिधियों को सौंपा गया. इनमें केसरीवाडा गणपति, अखिल मंडई का शारदा गजानन और ऐतिहासिक रंगारी गणपति की प्रतिकृतियाँ शामिल हैं.
35 साल बाद लौटा उल्लास, भावुक हुए कश्मीरी भक्त
दक्षिण कश्मीर वेसू वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष सनी रैना ने कहा कि यह आयोजन उनके लिए भावुक क्षण है. आगे उन्होंने बताया –“90 के दशक की स्थितियों में हमें अपना घर छोड़ना पड़ा था. आज, 35 वर्षों बाद घाटी में बप्पा का स्वागत करना केवल आस्था ही नहीं बल्कि पहचान और अपनापन लौटाने जैसा है. यह क्षण हमारे समुदाय के लिए बेहद खास है”.
वहीं, उत्सव के संयोजक और रंगारी मंडल से जुड़े पुनीत बालन ने भी अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि गणेशोत्सव सीमाओं में बँधा नहीं है. आगे उन्होंने कहा –“आज गणेशोत्सव भारत से बाहर 175 से अधिक देशों में मनाया जाता है. कश्मीर की वादियों में इसका आयोजन होना इस बात का प्रतीक है कि भक्ति और संस्कृति किसी सीमा से बंधी नहीं रहती. दशकों बाद जब यहाँ यह उत्सव फिर से संभव हुआ तो हमें इसे और आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली” इसके साथ ही पुनीत बालन ने यह भी बताया कि अब घाटी का माहौल बदल चुका है. “जहाँ कभी तनाव था, अब लोग देर रात तक भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद लेते हैं. भविष्य में हमारी योजना इसे घाटी के और जिलों तक ले जाने की है”.
पुणे और कश्मीर के कई प्रमुख मंडल पूरे साल करते हैं तैयारियां
पुणे से कश्मीर तक बप्पा की यात्रा को खास बनाने के लिए सात प्रमुख दल पूरे साल तैयारियों में रहते हैं. इस पहल को सफल बनाने के लिए – भाऊसाहेब रंगारी गणपति, कसाबा गणपति, अखिल मंडई, तांबडी जोगेश्वरी, केसरीवाडा, गुरुजी तालीम और तुलसीबाग, इन सभी मंडलों का निस्वार्थ योगदान रहा है. 1892 में लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किया गया. सार्वजनिक गणेशोत्सव अब महाराष्ट्र से निकलकर राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक बन चुका है.त कश्मीर में इसका आयोजन इसी परंपरा को और गहराई देता है.