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File photo (Getty Images)
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File photo (Getty Images)
एक तरफ पूरे देश में मंगलवार से दशहरा ख़त्म हो गया तो वहीं दूसरी तरफ हिमाचल के कुल्लू में मंगलवार से एक सप्ताह तक चलने वाला दशहरे का आगाज़ हुआ है।
कुल्लू दशहरा सदियों पुराना उत्सव है जो विजयादशमी से शुरू होता है, जिस दिन देश के बाकी हिस्सों में यह उत्सव खत्म हो जाता है।
सप्ताह भर चलने वाले दशहरा उत्सव में 200 से ज्यादा देवी और देवताओं को एक साथ पूजा की जाती है
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 'रथ यात्रा' में भाग लेकर उत्सव का उद्घाटन किया। उन्होंने धालपुर में भगवान रघुनाथ के रथ को खींचकर इस कार्यक्रम की शुरुआत की।
इस मौके पर राज्यपाल ने लोगों को बधाई दी और इस त्योहार को बुराई पर सच्चाई की जीत का प्रतीक बताया।
राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति विशिष्ट है और एक अलग पहचान रखती है। यहां साल भर मेले और उत्सव मनाए जाते हैं जो यहां की समृद्ध परंपराओं और लोगों की मान्यताओं की झलक दिखाते हैं।
इस उत्सव में कुल्लू घाटी के विभिन्न क्षेत्रों के करीब 245 देवताओं को शामिल किया जाता है।
देश के दूसरे हिस्सों की तरह कुल्लू में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले नहीं जलाए जाते। इसके बजाए, इकट्ठे हुए देवता लंकादहन समारोह के दौरान 17 अक्टूबर को ब्यास नदी के तट पर 'बुराई के साम्राज्य' को नष्ट करेंगे।
इस उत्सव की शुरुआत साल 1637 से मानी जाती है, जब राजा जगत सिंह कुल्लू पर राज करते थे और दशहरे में सभी स्थानीय देवताओं को भगवान रघुनाथ के अनुष्ठान समारोह के दौरान निमंत्रण देते थे।
तभी से सैकड़ों गावों के मंदिरों के देवताओं की वार्षिक सभा एक परंपरा बन गई है।
Source : News Nation Bureau