हिमस्खलन: किश्तवाड़ के अलिहा गांव पर मंडराया खतरा, परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया

भारी बर्फबारी और अस्थिर भूभाग के कारण क्षेत्र कई बार हिमस्खलन के चपेट में आ चुका है. गांव में अभी भी 25  से ज्यादा लोग मौजूद हैं. 

भारी बर्फबारी और अस्थिर भूभाग के कारण क्षेत्र कई बार हिमस्खलन के चपेट में आ चुका है. गांव में अभी भी 25  से ज्यादा लोग मौजूद हैं. 

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Mohit Saxena
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himachal Photograph: (social media)

गांधारी क्षेत्र के अलिहा गांव में हिमस्खलन का खतरा बढ़ गया है. इसमें कई घर जोखिम में आ गए हैं. प्रशासन  ने स्थिति को देखते हुए प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना शुरू कर दिया है. भारी बर्फबारी और अस्थिर भूभाग के कारण यह क्षेत्र बार-बार हिमस्खलन की चपेट में आता रहता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गांव में अभी भी 25 से अधिक लोग मौजूद हैं. वहीं 5-6 मकानों पर हिमस्खलन का सीधा खतरा बना हुआ है. ऐहतियात के तौर पर प्रशासन अब तक चार परिवारों के 25 सदस्यों को सुरक्षित स्थानों पर भेज चुका है.

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स्थायी समाधान निकालना चाहिए

गांव के लोग बार-बार आने वाले खतरे को लेकर बेहद चिंतित हैं. स्थानीय निवासी राम सिंह ने कहा, "हर साल सर्दियों के दौरान हम डर में जीते हैं. बर्फ का जमा होना अनिश्चित होता है, और जब हिमस्खलन आता है, तो हम सब कुछ खो देते हैं. सरकार को हमारे लिए कोई स्थायी समाधान निकालना चाहिए."

वहीं, विस्थापित हुए एक अन्य निवासी राकेश कुमार ने अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा, "हमें जल्दी में घर छोड़ना पड़ा. अपने घर, मवेशी और सारी मेहनत को पीछे छोड़ना बेहद दर्दनाक है. प्रशासन की मदद के लिए हम आभारी हैं, लेकिन हमें बेहतर बुनियादी ढांचे और सुरक्षा उपायों की जरूरत है."

राहत दल स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं

अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि राहत दल स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता दी जा रही है. जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हम क्षेत्र की लगातार निगरानी कर रहे हैं. यदि आवश्यक हुआ तो और भी लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जाएगा. हमारी प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है."

प्रशासन ने संवेदनशील इलाकों में रहने वाले लोगों से सतर्क रहने और किसी भी खतरे के संकेत मिलने पर तुरंत सूचित करने की अपील की है. इस बीच, स्थायी पुनर्वास या हिमस्खलन न्यूनीकरण उपायों की मांग तेज हो गई है, क्योंकि हर सर्दी में ग्रामीणों को अपनी जान का डर सताने लगता है.

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