न हाथ मिले न दिल, हरियाणा में कांग्रेस की दूर जाती मंजिल...
तंवर समर्थकों का कहना है कि पार्टी को बीजेपी से ज्यादा अपने लोगों से ही खतरा है, पिछले 5 साल में तंवर और हुड्डा के बीच चली खींच-तान से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है
हरियाणा:
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी में ऊपर से तो सबकुछ ठीक दिख रहा है, लेकिन अंदर से कहानी कुछ और है. पार्टी को चुनाव के दौरान भितरघात का डर सता रहा है. 5 साल से अधिक प्रदेश के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर के समर्थक तंवर को हटाए जाने से काफी गुस्से में हैं. तंवर समर्थकों का कहना है कि पार्टी को बीजेपी से ज्यादा अपने लोगों से ही खतरा है. सूत्रों की मानें तो पिछले 5 साल में तंवर और हुड्डा के बीच चली खींच-तान से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है.
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हरियाणा में सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में लगी हुई हैं. राज्य के मुख्यमंत्री जहां पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं तो वहीं सूबे में 10 तक लगातार सत्ता में रही कांग्रेस अभी भी अंतर्कलह से जूझ रही है. कुछ दिनों पहले ही भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की ज़िद के आगे कांग्रेस को झुकना पड़ा था. प्रदेश की कमान अशोक तंवर से लेकर कुमारी शैलजा को दे दी गई थी. कांग्रेस को ये उम्मीद है कि हुड्डा और शैलजा की जोड़ी के सहारे हरियाणा की नैया पार हो जाएगी.
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सूत्रों की मानें तो जिस तरह चुनाव से ठीक पहले अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटाया गया है. उससे वो काफी नाराज़ हैं और वो पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ न कोई मंच साझा करेंगे और न ही किसी रैली में शामिल होंगे. हुड्डा और तंवर की अदावत जग जाहिर है. इससे पहले भी खुलेआम दोनों ने एक दूसरे की खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी. तंवर अपने ऊपर हुए हमले को लेकर भी हुड्डा पर सवाल खड़े किए थे.
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कांग्रेस को हरियाणा में जाट, दलित, मुस्लिम समीकरण पर भरोसा है और इसी समीकरण के सहारे कांग्रेस ने 10 साल हरियाणा पर राज किया. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. कुमारी शैलजा को सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है और पार्टी की रणनीति भी थी कि चुनाव से पहले अगर तंवर को हटा कर एक दलित चेहरे को ही अध्यक्ष बनाया जाए, ताकि दलित समाज में कोई गलत संदेश ना जाए. सूत्रों का मानना है कि पांच साल तक हरियाणा कांग्रेस का चेहरा रहे तंवर को हटाए जाने से पार्टी को चुनाव में फायदा काम नुकसान ज्यादा होगा.
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