Migrant Exodus: बांग्ला बोलने वालों की पहचान पर सियासत, गुरुग्राम की बंगाली कॉलोनी में पसरा डर और सन्नाटा

Migrant Exodus: स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर यह सिलसिला ऐसे ही चला तो फिर से कोविड जैसे दिन लौट सकते हैं जब लोगों को अपने सारे काम खुद करने पड़ते थे.

Migrant Exodus: स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर यह सिलसिला ऐसे ही चला तो फिर से कोविड जैसे दिन लौट सकते हैं जब लोगों को अपने सारे काम खुद करने पड़ते थे.

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Yashodhan.Sharma
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Gurugram: बांग्लादेशी नागरिकों की वापसी के मुद्दे पर जहां एक ओर देशभर में सियासी हलचल तेज हो गई है, वहीं दूसरी ओर इसका असर दिल्ली से सटे गुरुग्राम की एक पुरानी बंगाली कॉलोनी पर भी साफ दिखाई दे रहा है. सेक्टर-49 स्थित इस कॉलोनी में कभी 200 से अधिक बंगाली परिवार रहा करते थे, लेकिन अब यहां केवल 20-25 परिवार ही बचे हैं.

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स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस उन्हें बार-बार बांग्लादेशी कहकर परेशान कर रही है, जबकि उनके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी जैसे सारे दस्तावेज मौजूद हैं. पुलिस बिना जांच किए लोगों को उठा ले जाती है, जिससे डर के कारण कई परिवार गांव लौट गए हैं.

2007 से बसे हैं परिवार

लोगों का कहना है कि उन्होंने वर्ष 2007 से यहां मेहनत कर अपना जीवन बसाया था. यहां रहने वाले अधिकांश लोग पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद, ईस्ट मिदनापुर और 24 परगना जैसे जिलों से आकर बसे हैं. वे फेरी लगाकर, रेडी चलाकर और घरेलू कामों के ज़रिए अपनी आजीविका चला रहे थे.

एक महिला ने बताया कि पुलिस बिना पहचान पत्र देखे सीधे लोगों को उठा ले जाती है. गाड़ियों पर नंबर प्लेट नहीं होती, कोई सुनवाई नहीं होती. डर इतना है कि कई लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को गांव भेज दिया है.

बच्चों की शिक्षा पर गहरा रहा संकट

यहां पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा पर भी संकट गहराने लगा है. कुछ बच्चे डीपीएस जैसे निजी स्कूलों में गरीब वर्ग की श्रेणी में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन पलायन के कारण अब उनकी पढ़ाई अधर में है. एक बच्चे ने बताया कि वह बड़ा होकर फौजी बनना चाहता है, लेकिन अब स्कूल जाना भी मुश्किल हो गया है.

इस कॉलोनी के खाली होने से आसपास की सोसाइटियों में काम करने वाले मेड, ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड की भारी कमी आ सकती है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर यह सिलसिला ऐसे ही चला तो फिर से कोविड जैसे दिन लौट सकते हैं जब लोगों को अपने सारे काम खुद करने पड़ते थे.

प्रशासन की ओर से नहीं आया आधिकारिक बयान

बड़ी बात यह है कि अभी तक प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है कि कितने लोग वाकई बांग्लादेशी हैं और कितने भारतीय नागरिक होने के बावजूद सिर्फ भाषा और क्षेत्र के आधार पर शक के घेरे में आ गए हैं.

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