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हरियाणा के गृहमंत्री अनिल बिज ने पूछे सवाल-आखिर लोग दिवाली पर राम की मूर्ति क्यों नहीं खरीदते

आखिर अनिल बिज ने जो सवाल उठाया है उसपर सोचना लाजिमी हो गया है. लोगों के मन भी ये सवाल उठने लगे हैं कि बात तो सही है कि जब श्रीराम रावण वध कर अयोध्या लौटे थे तब से दिवाली मनाई जाती है, लेकिन पूजा लक्ष्मी मां की होती है.

Updated on: 12 Nov 2023, 04:23 PM

नई दिल्ली:

भारत को त्योहारों और पर्वों का देश कहा जाता है. भारत में जितने त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं शायद ही दुनिया के किसी देशों में मनाए जाते होंगे. देश में हर महीने कोई ना कोई त्योहार होता ही है. हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने दिवाली के दिन एक सवाल कर सभी को चौंका दिया. उन्होंने लोगों से सवाल किया कि दिवाली तो श्री राम के अयोध्या पधारने पर मनाई जाती है, फिर लोग दिवाली पर केवल लक्ष्मी जी की मूर्ति घर लाते हैं, श्री राम कि प्रतिमा कहीं क्यों नहीं दिखती.

हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने सोशल मीडिया X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लोगों से पूछा की ''जब दीपावली का त्योहार श्री राम के चौदह साल के वनवास काट के वापस अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है, तो दिवाली पर हर दुकान पर श्री राम की मूर्ती क्यों नहीं दिखती''. उन्होंने लिखा-‘एक बात समझ नहीं आती कि लोग दिवाली तो मनाते हैं श्री राम जी के 14 वर्ष बाद अयोध्या वापस लौटने के कारण, लेकिन पूजा करते हैं लक्ष्मी जी की. बाजार में भी लक्ष्मी जी की प्रतिमा तो मिल रही है प्रत्येक दुकान पर परन्तु राम जी की प्रतिमा किसी किसी दुकान पर प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों. अगर प्रभु राम जी खुश हो जाएं तो फिर बाकी सब कुछ तो अपने आप आ जाता है.’

..तो इसलिए मां लक्ष्मी की होती है पूजा
आखिर अनिल बिज ने जो सवाल उठाया है उसपर सोचना लाजिमी हो गया है. लोगों के मन भी ये सवाल उठने लगे हैं कि बात तो सही है कि जब श्रीराम रावण वध कर अयोध्या लौटे थे तब से दिवाली मनाई जाती है, लेकिन पूजा लक्ष्मी मां की होती है. तो आइए आपको स्पष्ट कर दें कि दिवाली, रोशनी और प्रकाश का पर्व है और रोशनी का त्योहार सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करता है. मां लक्ष्मी को भी सुख समृद्धि के तौर पर जाना जाता है. इसी दिन घर में धन धान्य और सुख समृद्धि आती है. इसलिए मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. वैसे इसके पीछे कई अख्यान हैं.. इसमें मां लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा त्रेता, द्वापर और कलयुग में की जाती है.