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19 साल बाद पुलिस के हत्थे चढ़ा गोधरा कांड का मुख्य आरोपी, 2002 से था फरार

गोधरा कांड का मुख्य आरोपी रफीक हुसैन भटुक को गोधरा शहर से गुजरात पुलिस ने 19 सालों के बाद गिरफ्तार कर लिया है. भटुक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने बताया कि गोधरा कांड का प्रमुख आरोपी रफीक हुसैन भटुक साल 2002 से ही फरार चल रहा था.

Updated on: 16 Feb 2021, 01:50 PM

नई दिल्ली:

भारतीय राजनीति के इतिहास में गुजरात का दंगा एक बदनुमा दाग है. 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर हुए इस दंगे ने देश की कौमीं एकता को झकझोर के रख दिया था. इस इस दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी. गोधरा के जख्मों को लोग आज भी नहीं भूले हैं. रह रह कर उस दंगे की याद लोगों को सिहरने पर मजूबर कर देती है. इन दंगों की शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस की बोगी जलाने के साथ हुई थी. 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई. ये सभी 'कारसेवक' थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे.

आपको बता दें कि गोधरा कांड का मुख्य आरोपी रफीक हुसैन भटुक को गोधरा शहर से गुजरात पुलिस ने 19 सालों के बाद गिरफ्तार कर लिया है. भटुक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने मीडिया से बात चीत करते हुए बताया कि गोधरा कांड का प्रमुख आरोपी रफीक हुसैन भटुक साल 2002 से ही फरार चल रहा था. 51 वर्षीय रफीक भटुक साल 2002 में हुए गोधरा कांड का मुख्य आरोपी है.  आपको बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात के पंचमहल जेले के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक कोच में भीड़ ने आग लगा दी गई थी. इस घटना में 59 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई थी. जिसके बाद गुजरात में दंगे भड़के थे.

19 सालों से फरार था आरोपी भटुक
पंचमहल की पुलिस अधीक्षक लीना पाटिल ने मीडिया से बातचीत में बताया कि 51 वर्षीय रफीक हुसैन भटुक गोधरा कांड के आरोपियों के उस मुख्य समूह का हिस्सा था जो गोधरा कांड की पूरी साजिश में शामिल थे. उन्होंने बताया कि गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने भटुक को गिरफ्तार किया जो कि पिछले 19 सालों से फरार चल रहा था. एसपी ने आगे बताया कि गोधरा पुलिस की एक टीम ने रविवार रात छापेमारी कर भटुक को गिरफ्तार किया. गुजरात पुलिस ने रेलवे स्टेशन के पास स्थित सिग्नल फालिया इलाके में एक घर पर छापा मारा था जहां से गोधरा कांड का प्रमुख आरोपी भटुक की गिरफ्तारी हुई. 

ऐसे हुआ था गोधरा कांड
27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच (एस-6) से आग की लपटें उठने लगीं. कोच से धुंए का उबार निकल रहा था. इस आग में कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में आ गए. इनमें से ज्यादातर वो कारसेवक थे, जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इस हादसे ने पूरे गुजराज को दंगे की आग में झोंक दिया. एकाएक पूरे राज्य में दंगे शुरू हो गए.

घटना के बाद अलर्ट हुए मोदी
जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त गुजराज में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे. पूरी घटना को एक साजिश के तौर पर देखा गया. घटना के बाद उसी दिन शाम को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैठक बुलाई. इस बैठक को क्रिया की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया. इस बैठक को लेकर विपक्षी दलों ने काफी सवाल उठाए. ट्रेन में आग की बात को साजिश माना गया. इस मामले की जांच के लिए बने नानावती आयोग ने भी माना कि भीड़ ने ट्रेन की बोगी में पेट्रोल बम डालकर आग लगाई थी.

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अगले दिन ही भड़की हिंसा
27 फरवरी को गोधरा कांड के अगले ही दिन कई स्थानों पर हिंसा भड़क गई. 28 फरवरी को गोधरा के कारसेवकों के ट्रक खुले ट्रक में अहमदाबाद लाए गए. इस शवों को इनके परिजनों के बजाए विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया. इस सभी चीजें चर्चा का विषय रहीं. इसके बाद से ही गुजरात में दंगे शुरू हो गए.

31 लोगों का पाया गया दोषी
इस पूरे मामले की जांच एसआईटी ने की. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से एसआईटी ने भी पूछताछ की. एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था जबकि 63 को बरी कर दिया था. इनमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि 20 को उम्रकैद की सजा हुई. बाद में उच्च न्यायालय में कई अपील दायर कर दोषसिद्धी को चुनौती दी गई जबकि राज्य सरकार ने 63 लोगों को बरी किए जाने को चुनौती दी है.

जनवरी 2020 में गुजरात दंगे के 17 दोषियों को हुई थी उम्रकैद की सजा 
सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड के बाद 2002 में सरदारपुरा में भड़के दंगों के मामले में 15 दोषियों को मंगलवार को सशर्त जमानत दे दी। न्यायालय ने उन्हें सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है। इस घटना में एक विशेष समुदाय के 33 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने दोषियों को दो समूह में बांटा और कहा कि इनमें से छह लोग मध्यप्रदेश के इंदौर में रहेंगे, जबकि अन्य दोषियों के दूसरे समूह को मध्यप्रदेश के जबलपुर जाना होगा। इन लोगों को गुजरात में घुसने की इजाजत नहीं है। अदालत ने प्रत्येक दोषी को 25,000 रुपये के जमानती बांड पर कुछ शर्तो के साथ रिहा करने का निर्देश दिया है। दोषियों की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने 14 लोगों को बरी कर दिया था और 17 लोगों को दोषी ठहराया था। उन्हें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।