महात्मा गांधी ने सच में किया था आत्महत्या का प्रयास, जानें क्या था पूरा मामला
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में बचपन मेें किए गए आत्महत्या के प्रयास से जुड़ी घटना का जिक्र किया है. वह बताती है कि कमजोर लम्हा किसी के भी जीवन में आ सकता है.
highlights
- अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में किया आत्महत्या के प्रयास का जिक्र.
- सारे काम बड़ों से पूछ कर करने से चिढ़ गए थे अपनी जिंदगी से.
- धतूरे के बीज खाकर सोचा था आत्महत्या के बारे में. हालांकि बाद में डर गए.
नई दिल्ली:
बीते कुछ दिनों से गुजरात के स्कूली बच्चों से पूछे गए सवालों को लेकर जबर्दस्त बवाल मचा है. एक स्कूल के इंटरनल एग्जाम के दौरान क्लास 9 के बच्चों से पूछा गया था कि महात्मा गांधी ने आत्महत्या कैसे की? इसके साथ ही क्लास 12 के बच्चों से शराब तस्करी को रोकने के लिए पुलिस को कैसे पत्र लिखे के बाबत पूछा गया था. इस घटना के चर्चे होने पर स्कूल और गुजरात की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करने वालों का तांता सा लग गया. यह अलग बात है कि महात्मा गांधी की असल जिंदगी से जुड़ा इस तरह का एक वास्तविक प्रसंग है.
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'सत्य के प्रयोग' में किया बापू ने जिक्र
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में बचपन की इस घटना का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि अपने एक रिश्तेदार के साथ उन्हें बचपन में बीड़ी पीने की लत पड़ गई. उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि बीड़ी खरीदकर पी सके. उनके चाचा बीड़ी पीते थे. ऐसे में वह बीड़ी पीकर जो 'ठूंठ' फेंक देते थे, उसको चुनकर गांधीजी और उनके रिश्तेदार अपना शौक पूरा करते थे. उसके बाद उन्होंने अपने इस शौक के पूरा करने के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराने शुरू कर दिए.
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पराधीनता से चिढ़ किया आत्महत्या का फैसला
वह अपनी आत्मकथा में इस बारे में विस्तार से लिखते हैं कि बीड़ी पीने की लत पड़ने के बाद उन्हें लगने लगा कि हर काम बड़ों से ही पूछकर करना पड़ता है. अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकते. इससे वह ऊब गये और आत्महत्या करने का फैसला कर लिया. अब सवाल यह था कि आत्महत्या कैसे करें तो इसके लिए उन्होंने धतूरे के बीज को चुना. वह लिखते हैं, 'अपनी पराधीनता हमें अखरने लगी. हमें दुख इस बात का था कि बड़ों की आज्ञा के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते थे. हम ऊब गए और हमने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया.'
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मरने के लिए खाए थे धतूरे के बीज
वह आगे लिखते हैं, 'हमने सुना कि धतूरे के बीज खाने से मृत्यु होती है. हम जंगल में जाकर बीज ले आए. आत्महत्या के लिए शाम का समय तय किया गया. केदारनाथजी के मंदिर की दीपमाला में घी चढ़ाया, दर्शन किए और मरने के लिए एकांत खोज लिया. पर जहर खाने की हिम्मत न हुई. सोचने लगे कि अगर तुरंत ही मृत्यु न हुई तो क्या होगा? मरने से लाभ क्या? क्यों न पराधीनता ही सह ली जाए? फिर भी दो-चार बीज खाए. अधिक खाने की हिम्मत ही न पड़ी. दोनों मौत से डरे और यह निश्चय किया कि रामजी के मंदिर में जाकर दर्शन करके शांत हो जाएं और आत्महत्या की बात भूल जाएं.'
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