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पीएम मोदी ने बताया- कैसे उनकी मां हीराबेन ने अब्बास को भी पाला? ईद मनाने का भी जिक्र

मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बताया कि कैसे उनकी मां हीराबेन ने अब्बास को भी पाला? उन्होंने ईद मनाने का भी जिक्र किया है.

Updated on: 18 Jun 2022, 06:38 PM

नई दिल्ली:

Heeraben 100th Birthday : मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बताया कि कैसे उनकी मां हीराबेन ने अब्बास को भी पाला? उन्होंने ईद मनाने का भी जिक्र किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां के 100वें जन्मदिन के मौके पर ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने बचपन की कई यादों को साझा किया है. दूसरों की खुशियों में खुश रहना सीखाने के लिए मां को धन्यवाद दिया. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां के 100वें जन्मदिन पर एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने उस समय के यादगार लम्हों को याद किया है जब वे बच्चे थे. पीएम मोदी ने अपनी मां हीराबेन को धन्यवाद दिया है, जिन्होंने उनके परिवार को दूसरे लोगों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढने के महत्व को बताया. पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि कैसे उनके पिता के दोस्त के निधन के बाद उनका बेटा, उनके घर आया और उनके साथ रहा.

पीएम नरेंद्र मोदी ने मां के लिए अपनी आधिकारिक वेबसाइट (www.narendramodi.in) पर 'मां' शीर्षक से एक ब्‍लॉग भी लिखा है. PM मोदी लिखते हैं, ''मेरी मां, हीराबा आज 18 जून को अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं. यानी उनका जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है. पिताजी आज होते, तो पिछले सप्ताह वो भी 100 वर्ष के हो गए होते. यानि 2022 एक ऐसा वर्ष है जब मेरी मां का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है और इसी साल मेरे पिताजी का जन्मशताब्दी वर्ष पूर्ण हुआ है.

मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था. वडनगर से ये बहुत दूर नहीं है. मेरी मां को अपनी मां यानी मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था. एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था. उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था. मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी. उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है. आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं. मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा. उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव.

बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था. वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं. बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं. इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं.

वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था. उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था. कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे.

उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी. वही मचान हमारे घर की रसोई थी. मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे.

घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं. समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे. कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं. उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं.''