गुजरात में सियासी घमासान छिड़ चुका है। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार में तेजी आ रही है सूबे का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। जीत के लिए सभी दलों ने पूरा दमखम लगा दिया है।
राजनीति की बिसात पर शह और मात देने के लिए बाजियां चली जा रही हैं। नेताओं के जुबानी तीरों ने सियासत में उबाल ला दिया है और पूरा गुजरात राजनीति के रंग में रंगा नजर आ रहा है।
ऐसे में धर्म के आधार पर लोगों को बांटने और वोटों के ध्रुवीकरण का खेल भी जारी है। इस लिहाज से गुजरात के राजकोट में मौजूद गैबनशाह पीर की दरगाह का जिक्र जरूरी है जिसे हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। क्या हिंदू और क्या मुसलमान, सभी इनके दर पर सिर नवाते हैं।
राजकोट के गैबनशाह पीर की दरगाह
यहां पिछले 200 साल से हर धर्म के लोग आते हैं। गैबनशाह पीर की दरगाह के प्रेसिडेंट हाजी बाबू जान मोहम्मद बताते हैं, 'यहां बीजेपी वाले भी आते हैं कांग्रेस वाले भी आते हैं। हर मजहब के लोग यहां आते हैं। यहां कोई भेदभाव नहीं आते हैं।'
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स्थानीय लोग बताते हैं कि गुजरात धर्म और जाति से ऊपर विकास के मुद्दे पर वोट देंगे।
मान्यता है कि यहां सिर झुकाने से हर तरह की परेशानी खत्म हो जाती है। लोगों के मुताबिक गुजरात को धर्मों में बांटकर वोटिंग नहीं कराई जा सकती और गुजरात धीरे धीरे इन सब से आगे निकल रहा है।
डायरो पर भी छाया चुनावी माहौल
बात राजकोट की है तो डायरो यानि गुजराती लोक संगीत कार्यक्रम का भी जिक्र जरूरी है। इसके बिना राजकोट की संस्कृति अधूरी है। इसके माध्यम से ईश्वर की स्तुति की जाती है। जब लोक कहानिया, दोहे और छंद को गीतों में ढालकर गाया जाता है तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
डायरो पर आजकल गुजरात चुनाव की खुमारी छाई हुई है। लोक कलाकर सियासत में वैमनस्य का विरोध अपने तरीके से कर रहे हैं। कुल मिलाकर दरगाह से लेकर लोक गीतों तक पर गुजरात चुनाव की छाप साफ देखी जा सकती है।
गुजरात विधानसभा के लिए दो चरणों में वोटिंग होनी है। पहले चरण में 19 जिले की 89 सीटों पर 9 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। जबकि 14 जिलों की 93 सीटों पर 14 दिसंबर को वोटिंग होगी।
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HIGHLIGHTS
- गुजराती लोगों का दावा- धर्म और जाति से आगे बढ़कर विकास बन रहा है मुद्दा
- राजकोट के गैबनशाह पीर की दरगाह और लोक गीतों पर भी चुनावी रंग
- हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है गैबनशाह पीर की दरगाह को
Source : News Nation Bureau