( रिपोर्टर - सुशील पांडेय )
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा पत्नी का आजीविका कमाने में सक्षम होना पति को भरण-पोषण देने से बरी नहीं कर देता और उसे मुफ्तखोर कहना उसके साथ-साथ पूरी महिला वर्ग का अपमान है. दिल्ली हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी भरण-पोषण के लिए हर महीने पत्नी को तीस हजार रुपये महीने दिए जाने के खिलाफ एक पति की याचिका पर कही हैं. दिल्ली हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने मामले में अहम सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय महिलाएं परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती हैं.
ये महिला वर्ग के अपमान करने जैसा है
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने पति द्वारा दाखिल याचिका को खारिज करते हुए यह कहा कि पत्नी केवल एक पैरासाइट ( मुफ्तखोर) है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रही है न केवल उसकी पत्नी बल्कि समाज मे पूरी महिला वर्ग के अपमान करने जैसा है दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पत्नी घरेलू हिंसा की शिकार थी. घरेलू हिंसा' शब्द में शारीरिक शोषण, यौन शोषण, मौखिक-भावनात्मक शोषण, आर्थिक शोषण और अन्य सभी प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल हैं जो एक महिला को दिए जा सकते हैं.
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा क्योंकि वह इस फैक्ट को बर्दाश्त करने में असमर्थ थी कि उसका पति किसी अन्य महिला के साथ रह रहा है. चूंकि पत्नी अपने दो बच्चों की देखभाल करने की स्थिति में नहीं थी. इसलिए उसके पास छोड़ने का कोई विकल्प नहीं था. वे यहां याचिकाकर्ता यानी पति के माता के साथ है. दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान कहा पत्नी द्वारा दायर शिकायत में यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा उसके साथ शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार किया गया था. कोई भी महिला यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि उसका पति किसी अन्य महिला के साथ रहे और उससे उसे एक बच्चा भी है. ये सभी बातें पत्नी को घरेलू हिंसा का शिकार बनाती है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 सामाजिक न्याय के उपकरण हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं और बच्चों को संभावित अभाव और गरीबी के जीवन से बचाया जाए.
जिम्मेदारी से नही भाग सकता पति
धारा 125 में कहा गया है कि यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए जिम्मेदार है. वह अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकता. कोर्ट ने कहा एक पति अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के अपने दायित्व से नहीं बच सकता. जब तक कि कानून में कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य आधार शामिल न हो. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की वित्तीय और संपत्ति प्रोफ़ाइल आरामदायक और समृद्ध लाइफ स्टाइल को दर्शाती है और इसलिए वह रखरखाव के रूप में हर महीने 30,000 रुपये का भुगतान करने की स्थिति में है.
क्या है पूरा मामला...
दरअसल ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान और तीस हजार रुपये महीने देने का निर्देश दिया था जिसमें मुकदमेबाजी में हुए खर्च की रकम भी शामिल थी. याचिकाकर्ता पति ने ट्रायल कोर्ट के इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसके हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.
ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता पति ने हाई कोर्ट में दलील दिया कि उसकी पत्नी एक सक्षम महिला थी जिसने एक बुटीक में काम किया था और इसलिए उसे कानून का दुरुपयोग करके पैरासाइट ( मुफ्तखोर) बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती. दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह तथ्य कि पत्नी कमाने में सक्षम है उसके नुकसान होने पर काम नहीं कर सकती.