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क्या है GNCTD बिल? जिसे लेकर आमने-सामने हैं दिल्ली सरकार और केंद्र( Photo Credit : न्यूज नेशन)
दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं. इस बार टकराव का कारण लोकसभा में पेश किया गया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक बन रहा है. केंद्र की इस बिल के बहाने उपराज्यपाल और मजबूत करने की तैयारी है. अगर बिल पास होता है कि दिल्ली सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल से इजाजत लेनी होगी. बिल के पास होने के बाद उपराज्यपाल की ताकत और बढ़ जाएगी. ऐसे में उपराज्यपाल की भूमिका और मजूबत होगी. इसी को लेकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
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यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र अपने अधिकारों को लेकर आमने-सामने हों. इससे पहले भी कई मौके सामने आ चुके हैं जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन चुकी है. दिल्ली लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए बेड रिजर्व करने की मांग को लेकर भी दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति बनी थी. 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच और 2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बैंच का फैसला आने के बाद लगा था कि ये मसला अब सुलझ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने उन फैसलों में राज्य सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों को परिभाषित कर दिया था. लेकिन अब एक बार फिर ये मसला गर्माता हुआ दिखाई दे रहा है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक पेश किया.
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इस बिल में क्या है?
मनीष सिसोदिया के मुताबिक विधेयक में कहा गया है कि सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा और हर काम के लिए दिल्ली सरकार को पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. ऐसे में चुनी हुई सरकार की जरूरत ही नहीं है. नए विधेयक के मुताबिक दिल्ली सरकार को अपने हर फैसले को लागू करवाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. यानी की दिल्ली में निर्वाचित सरकार के 'सुपर बॉस' उपराज्यपाल होंगे. दिल्ली सरकार अब इस मामले के कानूनी पहलुओं को देखने में जुट गई है. उसके मुताबिक इस विधेयक से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की कोशिश की जा रही है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं.
HIGHLIGHTS
- केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश किया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच भी सुना चुकी है फैसला
- दिल्ली सरकार कानूनी पहलुओं पर ले रही विशेषज्ञों की राय