तीस हजारी कांड (Tis Hazari Case) : आला पुलिस अफसरों (Top Cop) की सुस्ती के चलते वकीलों से पिटते रहे हवलदार-सिपाही!

घटनाक्रम के सीसीटीवी फुटेज इस बात के गवाह हैं कि जब अपनी पर उतरे वकील लॉकअप को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, तब लॉकअप के भीतर मौजूद थर्ड बटालियन के निहत्थे दारोगा, हवलदार-सिपाही कैसे मार खाते हुए भी, वकीलों से खुद को और लॉकअप के मुख्य द्वार को बचाने की जद्दोजहद से जूझ रहे थे.

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Sunil Mishra
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तीस हजारी कांड (Tis Hazari Case) : आला पुलिस अफसरों (Top Cop) की सुस्ती के चलते वकीलों से पिटते रहे हवलदार-सिपाही!

आला पुलिस अफसरों की सुस्ती के चलते वकीलों से पिटते रहे हवलदार-सिपाही!( Photo Credit : IANS)

शनिवार को दिल्ली की तीस हजारी अदालत में हुए झगड़े में कई सनसनीखेज खुलासे धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. कुछ तो ऐसे तथ्य हैं जिन पर आसानी से विश्वास करना भी मुश्किल है. सच तो मगर सच है जिसे नकार पाना दिल्ली पुलिस और वकीलों में से किसी के लिए भी आसान नहीं होगा. तथ्यों पर विश्वास करने-कराने के लिए खून-खराबे वाले इस शर्मनाक घटनाक्रम के वीडियो ही काफी हैं. आईएएनएस की विशेष पड़ताल और घटनाक्रम के वीडियो (सीसीटीवी और मोबाइल फुटेज) देखने के बाद यह साफ हो गया है कि, 'वकील यूं ही बेखौफ होकर पुलिस वालों पर नहीं टूट पड़े थे, बल्कि उन्हें लॉकअप की सुरक्षा में तैनात तमाम निहत्थे हवलदार-सिपाहियों (इनमें से अधिकांश दिल्ली पुलिस तीसरी बटालियन के जवान हैं, जिनकी जिम्मेदारी लॉकअप सुरक्षा और जेलों से अदालत में कैदियों को लाने ले जाने की है) को जमकर पीटने का पूरा-पूरा मौका कथित रुप से दिया गया!'

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घटनाक्रम के सीसीटीवी फुटेज इस बात के गवाह हैं कि जब अपनी पर उतरे वकील लॉकअप को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, तब लॉकअप के भीतर मौजूद थर्ड बटालियन के निहत्थे दारोगा, हवलदार-सिपाही कैसे मार खाते हुए भी, वकीलों से खुद को और लॉकअप के मुख्य द्वार को बचाने की जद्दोजहद से जूझ रहे थे.

उन जानलेवा हालातों में भी लॉकअप पर तैनात पुलिस स्टाफ की मजूबरी यह थी कि वे कानूनन किसी भी कैदी को हथकड़ी नहीं लगा सकते थे. मतलब कैदियों को अगर जरा सा भी मौका मिलता तो वे कभी भी मौके का फायदा उठाकर फरार हो सकते थे.

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ऐसे में लॉकअप के बाहर मचे बबाल को काबू करने की जिम्मेदारी सीधे-सीधे स्थानीय थाना पुलिस (सब्जी मंडी) और उत्तरी दिल्ली जिले के पुलिस अधिकारियों की बनती थी. सीसीटीवी के शुरूआती फुटेज में मगर कहीं भी थाना सब्जी मंडी एसएचओ से लेकर सब डिवीजन सब्जी मंडी का सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी), उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) मोनिका भारद्वाज, एडिशनल डीसीपी हरेंद्र कुमार सिंह, संयुक्त पुलिस आयुक्त मध्य परिक्षेत्र राजेश खुराना, विशेष पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था, उत्तरी परिक्षेत्र) संजय सिंह सहित दिल्ली पुलिस के तमाम जिम्मेदार आला-अफसरान कहीं भी सीसीटीवी फुटेज में पुसिकर्मियों से सिर-फुटव्ववल कर रहे वकीलों से जूझते नजर नहीं आ रहे हैं. इतना ही नहीं जब काफी देर की लेट-लतीफी के बाद एडिशनल पुलिस फोर्स मौके पर पहुंचा तो उसे भी कोई आला पुलिस अफसर लीड करता हुआ नहीं दिखाई दिया.

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मतलब साफ है कि लॉकअप इंचार्ज ने जब बबाल का मैसेज दिया तभी तुरंत दिल्ली पुलिस के संबंधित आला पुलिस अफसरों को मौके पर पहुंचकर हालात काबू करवा लेने चाहिए थे, ताकि बात गोली चलने-चलाने तक पहुंचती ही नहीं. न ही लॉकअप की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी बे-वजह वकीलों से जमीन पर पड़े-पड़े लात-घूंसों से मार खाते. हां, उत्तरी दिल्ली जिले के एडिशनल डीसीपी हरेंद्र कुमार सिंह काफी देर बाद ही सही मगर घटनास्थल पर पहुंचे. मौके पर पहुंचते ही वे वकीलों के हमले में जख्मी हो गए. हरेंद्र सिंह खुद को भी बाकी तमाम पुलिसकर्मियों और मौजूद कैदियों को तीस हजारी के लॉकअप में बंद करके सुरक्षित बचा पाए.

जिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज इस पूरे बबाल में घटनास्थल पर कहीं भी मौजूद (सीसीटीवी में) दिखाई नहीं दीं. उल्लेखनीय है कि, यही उत्तरी जिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज जब पश्चिमी दिल्ली जिले की डीसीपी थीं, तब भी मायापुरी इलाके में की गई अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के दौरान कई पुलिस कर्मी जमकर पीटे गए थे, जबकि खुद डीसीपी मोनिका भारद्वाज मौके पर ही कथित रुप से बेहोश होकर गिर पड़ी थीं.

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