रिवॉल्वर लिए सामने खड़ा था दंगाई, सीना ताने खड़ा रहा ये पुलिसवाला

उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में भड़की हिंसा (Delhi Violence) में दिल्ली पुलिस का जाबांज हवलदार दीपक दहिया (Deepak Dahiya) के सामने शाहरुख नाम का दंगाई रिवॉल्वर ताने खड़ा था.

उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में भड़की हिंसा (Delhi Violence) में दिल्ली पुलिस का जाबांज हवलदार दीपक दहिया (Deepak Dahiya) के सामने शाहरुख नाम का दंगाई रिवॉल्वर ताने खड़ा था.

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Kuldeep Singh
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दिल्ली पुलिस का जांबाज सिपाही दीपक दहिया( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में भड़की हिंसा (Delhi Violence) में दिल्ली पुलिस का जाबांज हवलदार दीपक दहिया (Deepak Dahiya) के सामने शाहरुख नाम का दंगाई रिवॉल्वर ताने खड़ा था. सोमवार को हुई हिंसा में दीपक पर ही बदमाश शाहरुख ने लोडिड रिवाल्वर तान दी थी. बाद में बेखौफ शाहरुख हवा में गोलियां चलाता हुआ मौके से फरार हो गया. दीपक दहिया ने बातचीत में कहा कि मेरी इमरजेंसी ड्यूटी उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में लगा दी गई. वैसे मैं हवलदार की ट्रेनिंग बजीराबाद स्थित दिल्ली पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में ले रहा हूं. दिल्ली पुलिस में मैं 2012 में सिपाही के पद पर भर्ती हुआ था.

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मूलत: सोनीपत (हरियाणा) के रहने वाले दीपक दहिया ने बताया कि मेरे पापा कोस्ट गार्ड में नौकरी करते थे. परिवार में कई अन्य लोग भी वर्दी की नौकरी कर रहे हैं. दो छोटे भाईयों में से एक भाई दिल्ली पुलिस में ही सिपाही है, जबकि दूसरा भाई कोस्ट गार्ड में ही सेवारत है. दीपक ने बताया कि मैं विवाहित हूं. पत्नी घरेलू महिला है. दिल्ली पुलिस में सिपाही भर्ती होने के बाद अलग अलग-जगहों पर तैनाती मिली. हवलदार पद की जब दिल्ली पुलिस में विभागीय वैंकेंसी निकली तो मैंने भी उसमें फार्म भर दिया. परीक्षा भी पास कर ली.

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वजीराबाद में चल रही ट्रेनिंग
दीपक ने बताया कि इन दिनों उसकी वजीराबाद स्थित दिल्ली पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में हवलदार पद की ट्रेनिंग चल रही ही है. जिस दिन नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट में सोमवार को हिंसा हुई तो हमारे सेंटर से भी जवानों को मौके पर बुला लिया गया. मैं भी अपने कुछ साथियों के साथ उस दिन मौके पर ड्यूटी कर रहा था. उसी वक्त अचानक मेरे ठीक सामने लाल मैरून टी शर्ट पहने एक लड़का अंधाधुंध गोलियां चलाता हुआ आ गया. वो युवक देखने में पढ़ा लिखा जरूर लग रहा था. पहनावे से भी ठीक ठाक दिखाई दे रहा था. जब उसे हाथ में रिवाल्वर से खुलेआम पुलिस और पब्लिक को टारगेट करते हुए गोलियां चलाते देखा तब उसकी हकीकत का अंदाजा मुझे हुआ, मैं समझ गया कि इससे बेहद सधे हुए तरीके से ही निपटा जा सकता है. वरना एक लम्हे में वो मेरे सीने में गोलियां झोंक देगा.

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लाठी से किया रिवॉल्वर का सामना
दीपक ने बताया कि मेरे हाथ में एक लाठी थी और उसके हाथ में लोडेड रिवॉल्वर. फिर भी मैंने उसे अपनी बॉडी लैंग्वेज से यह आभास नहीं होने दिया कि, मैं उससे भयभीत हूं. बल्कि उसे यह अहसास दिलाने की कोशिश की कि, मैं अपने हाथ में मौजूद लाठी से ही उसके हमले को नाकाम कर दूंगा. उसे जब लगा कि मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं, तो वो खुद ही गोलियां दागता हुआ मौके से फरार हो गया. उस वक्त मैंने मौके को हालात के मद्देनजर नहीं छेड़ा. इन हालातों में कैसे जीता जाये यह ट्रेनिंग मुझे पुलिस में दी गयी थी. पुलिस की वही ट्रेनिंग उस दिन मुझे रिवाल्वर वाले के सामने भी एक लाठी के सहारे जिताकर जिंदा बचा लाई.

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डर का अहसास दिखाता तो कहानी कुछ और होती
दीपक से जब पूछा गया कि तुम्हें हाथ में सामने लोडेड रिवाल्वर लिये खड़े युवक से डर नहीं लगा? तो जवाब में उन्होंने कहा कि अगर मैंने उसे अपने डर जाने का अहसास करा दिया होता तो शायद आज कहानी कुछ और होती. मैं आपसे बात करने के लिए ही नहीं बचा होता. उसे मैंने हिम्मत के साथ अहसास कराने की कोशिश की थी कि, अगर उसने गोली चलाई तो जवाब में मैं उस पर लाठी चलाने से नहीं चूकूंगा. बस यही तरीका बचा लाया. और फिर मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है.

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